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________________ दूरं उन्नामिकण भणिउं पवत्तो - मयवं ! अवितहमेयं जं तुब्भे वयह, ता अणुगिण्हह अम्हे सदिक्खापयाणेणं, विरतमिहि गेहवासाओ माणसं, भगवया भणियं - जुत्तमेयं भवारिसापि, तओ कयकिञ्चमप्पाणं मन्नंताई उत्तरपुरत्थिमदिसिसमुज्झियभूसणकुसुमदामाई निवत्तियपंचमुट्ठियलोयकम्माई ताई विपयाहिणादाणपुरस्ारं परमेसरं वंदित्ता भणिउं पवत्ताई - भयवं ! जरामरणरोगसोगविप्पओगजलणजाला कलावकवलियाओ आहे एसो भनजरकुडीराओ नित्थारेसु सहत्थेण तुमं, तुह पयसरणमल्लीणो खु एसो जणो, इय भणिए भुवणगुरुणा सयमेव तेखि दिन्ना दिक्खा, कहिओ साहुसमायारो परुविओ आवस्यविही, एवं तक्कालोचियं सवं विहिं देसिऊण भयवं अज्जचंदणाए पचत्तिणी देवानंद सिस्सिणित्ताए पणामेह, उसमदत्तं च थेराणं समप्पेइ, अह ताई निकलंकसमणधम्मपरि| पालणबद्धलक्खाई अपुचापुचतवचरणपरायणाई अहि एक्कारस अंगाई पर्जत समय समाराहियसंलेहणाई निधानगहामंदिरारोहहेऊभूयं निस्सेोर्णिपिव खवगसेणिं आरुहिऊण पत्ताहं दोन्निव विगि । भयपि वद्धमाणो परिअरिओ गोयमाइसमणेहिं । हिययाहिंतोवि तमं अवर्णितो भवसत्ताणं ॥ १ ॥ गामागरनगराइ विहरंतो सिवपयं पयासिंतो । खत्तियकुंडग्गामे नयरम्मि कमेण संपत्तो ॥ २ ॥ तत्थ य सुरेहिं रइयं चीतरुपायारगोयरसणाहं । ऊसियसियधयनिवहं जणसुहकरणं समोसरणं ॥ ३ ॥ बत्तीसंप सुरिंदा जिणमुहकम लावलोयणसतण्हा । विविहविमाणारूढा ओअरिया सुरपुरीहिंतो ॥ ४ ॥ 1 <
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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