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________________ DHANREENIELITELLITE एयंमि अकीरते तित्थुच्छेओ जिणे अभत्ती य । साहूणमणागमणं भवाणमवोहिलाभो य ॥६॥ काराविए इममी भवजलनिहितरणजाणवतंमि । अचंतसंतकता कारेभवा जिणप्पडिमा ॥ ७ ॥ तीसे तिसंझमपमत्तमाणसेहिं परेण जत्तेणं । पूया य विरइयबा सा पुण अट्ठपयारेवं ॥ ८॥ वासकुसुमक्खएणं धूवपईवेहिं वारिपत्तेहिं । फलभोयणभेएहि य जणनयणाणंदजणगेहिं ॥९॥ इय अट्टविहा पूया कीरंती भत्तीऍ जिणिंदाणं । तं नत्थि नूण कलाणमेत्थ जं नो पणामेइ ॥ १० ॥ तथाहि-हरियंदणघणसारुभवेहिं गंधेहिं सुरहिगंधेहिं । सवण्णुसिरे निहिएहिं होंति भवा सुरहिदेहा ॥ ११ ॥ नवमालइकमलकयंवमलियापमुहकुसुमदामाहिं । विरयंता जिणपूंय धरंति भवा सिवसुहं च ॥ १२ ॥ नहरुइजलपडिहत्थे जिणपयछेत्ते जमक्खया खित्ता । पसवंति दिवसुहसस्ससंपयं तं किमच्छरियं? ॥ १३॥ घणसारागुरुधूवो जयगुरुपुरओ जणेण डज्झंतो । उच्छलियधूमपडलच्छलेण अवणेइ पावं च ॥ १४ ॥ जे दीवं देति जिणिंदमंदिरे सुंदराय भत्तीए । ते तिहुयणभुवणभंतरेक्कदीवत्तणमुर्विति ॥ १५॥ तिहुअणपहुणो पुरओ ठवेंति जं वारिपुन्नपत्ताई। तं नृणं पुबजियदुहाण सलिलं पयच्छंति ॥ १६ ॥ परिपागवससमुग्गयविसिद्वगंधेहिं तरुवरफलेहिं । जिणपूयं कुणमाणा लहंति मणवंछियफलाई ॥ १७ ॥ बहुभक्खवंजणाउलओयणचरुपागपमुहवत्थूहिँ । धन्ना विरइंति बलिं सुहनिहिउक्खणणहेउत्ति ॥ १८ ॥ 2CLEARRAIMADHESIGNER
SR No.010405
Book TitleMahavira Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size277 MB
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