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________________ . ५४ . भगवान महावीर । कारमें पड़ी हुई प्रकाशके लिए चिल्ला रही थी। इस यज्ञप्रथाका प्रभाव समाजपरं बड़ा ही बुरा पड़ता था। एक तो यज्ञोमें जो पशुहत्या होती थी, उसके कारण मनुष्योंके हृदय निर्दय और कठोर होते जाते थे, और उनके हृदयसे जीवनके महत्व और प्रतिष्ठाको भाव उठता जाता था। मनुष्य अध्यात्मिक जीवन के गौरवको मूलने लगे थे । इन यज्ञोका दूसरा प्रभाव यह था कि मनुष्योंमें जड़ पदार्थकी महिमा बहुत अधिक फैल गई थी। इतना ही नहीं कि वे आम्यन्तिरिक बातोंकी अपेक्षा वाह्य वातोका अधिक सम्मान करने लगे थे, किन्तु बाह्य वातों ही को अपने जीवनमे सबसे श्रेष्ठ स्थान देते थे। लोगोंका विश्वास था कि यज्ञ करनेसे बुरे कर्मोका फल नष्ट होनाता है। भला 'सद-जीवन और पवित्र आचरणका गुरुत्व ऐसे समाजमे कब रहसता है, क्योंकि लोग जानते है कि पापसे कलुषित आत्माकी कालिमाको नष्ट करने के लिए पश्चात्ताप और संतापकी प्रचण्ड अग्नि उद्दीपित करनेकी कोई आवश्यका नहीं, केवल यज्ञके मांस-दुर्गन्धामिसिक्त धूमसे ही आत्मा उज्जवल होनायगी। फल इससे बिल्कुल विपरीत होता था। आत्माकी कालिमा और अधिक गहरी होती जाती थी। यज्ञ करनेमें बहुत रुपया खर्च होता था. ..अतएव हरएकेके भाग्य में यज्ञ करके यश प्राप्त करना न था। धनवान पुरुष ही या करनेका साहम कर सका था। इसलिए विचारप्रवाह कर्मकाण्डके विरुद्ध बहने लगा और लोग आत्मशाति, प्राप्त करनेके लिए नए नए. उपाय सोचने लगे।" इस ही अवसर पर गान महावीरने जन्न ले उनके मनस्तापको शांत किया था।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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