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________________ 'श्री पार्श्वनाथजी वस्तुतः अथवा अन्यथा एक सादृश्य पाया जाता है। परन्तु जब खयं जैकोबीने तथा अन्य प्राची विद्या महार्णवोंने जैनधर्मकी प्राचीनता बौद्धधर्मसे अगाडीकी स्वीकार कर ली है; तब ऐसा कौनसा कारण रह जाता है कि जैनशास्त्रों पर बिल्कुल ही विश्वास न किया जावे । और इसीलिए अन्तमें प्रो० नैकोबी जैनशास्त्रको विश्वास योग्य बतला गए हैं । और भगवान पार्श्वनाथकी ऐतिहासिकता खीकार कर गए है। तिसपर जनशास्त्रोंका वर्णन बहुतायतसे ऐतिहासिक सिद्ध होता जारहा है। इन्हीं पार्श्वनाथस्वामीको कुछ काल पडिले ऐतासिक व्यक्ति स्वीकार नहीं किया जाता था पर वही अब ऐतिहासिक व्यक्ति माने जाने लगे हैं। जैसा कि डॉ. लड्डू अपने व्याख्यानमें कहते हैं कि "यह तो अवश्य यथार्थ है कि जैनधर्म बौद्धसे प्राचीन हैं और इसके संस्थापक चाहे पार्श्वनाथ हो-अथवा उनके पहिलेके कोई तीर्थफर जो महावीर स्वामीसे पहिले विद्यमान रहे हों।" (देखो Practical Path p. 175) और योरूपीय विद्वानोंमें इन्सालोपेडिया आफ रिलीजन एण्ड ईथिकस भाग सप्तम ४० ४६६ पर भी जैनधर्मकी प्राचीनता सिद्ध करते हुए कहा है कि २३ ३ तीर्थकर पार्श्व बहुतायतसे जैनधर्मके संस्थापक कहे जासकते हैं और « Harmosworth History of the World " Vol IL p. 1198 में भी कहा है कि "जैन नातपुत (श्री महावीर वर्डमान) से भी पहिले कितने तीर्थकरोंका होना मानते हैं, जिनमें सबसे अंतिम पार्श्व अथवा पार्श्वनायकी विशेष विनय करते हैं। सो उनका ऐसा मानना ठीक ही है क्योंकि
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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