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________________ तीर्थकर कौन है? नीचे सुवर्णके कमलोंको रचते जाते हैं, सब दिशाएं खच्छ होजाती हैं। देवता लोग भगवानका जय जयकार बोलते हैं। धर्मचक्र भगवानके आगे चलता है। सब चौदह देवरूत अतिशय भगवानको केवलज्ञान उत्पन्न होनेसे होते हैं। भगवान १८ दोषोंसे रहित, क्षायिकसम्यक्तव, क्षायिकचरित्र, केवलज्ञान, केवलदर्शन, अनन्तदान, अनन्तलाम, अनन्तभोग, अनन्त उपभोग और अनन्त वीर्यसे शोभायमान होते हैं।" इन्हीके उपदेशको जैनधर्म कहते हैं। ___ इस प्रकार तीर्थकर भगवानका खरूप है। उनके संबंध . जेन शास्त्रानुसार वर्णन की हुई वहुतसी बातोंपर आधुनिक सम्य समानको सहसा विश्वास न होगा। वह ऐसी बातोंको असंभवताके गतमें पटकते नहीं हिचकिचाएंगे परंतु विचार करनेसे इनका सत्यांश बुद्धिको स्वीकार करना पड़ता है। आधुनिक पुद्गलवादके जमानेमें . जो आश्चर्यजनक उन्नति इस पौलिक शक्तिकी सभ्य समानने की: है येनी भी परमोच्च उन्नति स जमानेके आत्मवादी मनुष्योंने मात्मवादमें की थी । इसलिए इन बातोंर विश्वास किया जासका है। जो कि अब पुराण वर्णित विमान और अग्निस्थ आदिका विधान लोगो होगया है। जनधर्म के वर्गनानुसार वनस्पतिमें भी व बीनशक्तिका होना ममाणित कर दिया गया है । अन्तु आत्माकी अनन्त शक्ति है। उसके प्रभावसे कोई भी कार्य सहसा जांभान गाता और उनका वर्णन अतिशयोक्ति नहीं है। बोल सुनील अपने नामिना उपन्यासको भूमिकामें श्री मी सत प्रभावले संवने लिखते हैं कि "इस बुद्धिका गुण Shiritual Fores अभ्यानिक बलकी सी चाहिए
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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