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________________ जीवनसे प्राप्त प्रगट शिक्षाऐं । २६३ और उन्हें उनकी मुक्तिका यथार्थ मार्ग समझनेके अयोग्य प्रगट करते हैं । हालमें उस सिद्धांतकी सम्पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, जो सिद्धांत जैनधर्मके अस्तित्वको कायम रख सकें । इस वातकी वर्तमानकी जैन समाजको विशेष आवश्यक्ता है । और यदि भगवान महावीरके जीवनसे इस विषय में ज्ञान न मिले तो मैं समझंगा कि आप अपनी भूलसे वस्तुस्थितिको नहीं जान सके । " "इस जीवनसे तीसरी शिक्षा हमें समयानुसार परिवर्तनके लिए तत्पर रहनेकी मिलती है । संसारमें जाहिरासे ज्यादा लकीरके फकीर होनेके भाव फैलरहे हैं । हमारे विचारोंसे हमारे कार्य्य जल्दी बदल जाते हैं । यही कारण है कि हम नाम मात्रमें श्री सीर्थङ्कर भगवानके उपदेशोंको अपनाते हैं, जब कि हम जानते हैं कि हमारे वास्तविक कार्य इस उपदेशसे कोसों दूर हैं, परन्तु जैनी, अन्य भारतीयोंके साथ, यह भूल गए हैं कि बिल्कुल लकीरके फकीर बने रहनेसे नाशके दृश्य नजर आते हैं और सुधार उन्नतिका मूल है | भगवान महावीरके समय में कठिन तपश्चरणकी आवश्यक्ता थी । उन्होंने उसका आवश्यक प्रचार किया था । ?? अस्तु, हमें भी योग्य सुधार के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए । चौथी मुख्य बात भगवान महावीरके जीवनकी यह है कि "आपने स्त्रियोको विशेष स्वतंत्रता प्रदान की थी। सैद्धांतिक रीत्या जैनधर्मने स्त्रियोंके धार्मिक स्वत्वोंकी समानताको स्वीकार किया है। केवल इसके कि दिगम्बर ढष्टिसे लियां स्त्रीयोनिसे निर्वाणको प्राप्त नही हो सक्तीं, परन्तु अमलमें स्त्रियोका सन्मान इतना नही है - वह मनुष्यसे हीन गिनी जाती हैं, परन्तु यथार्थमें उनको
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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