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________________ । भगवान महावीर। सनातन स्थानको माप्त हुए थे ।" इसलिए भगवानके जीवनकी इस मुख्यतामें हमें यह शिक्षा मिलती है कि " पुस्तकावलोकन, अनुशीलन और मनन द्वारा ज्ञानके उपार्जनमें दत्तचित्त रहना चाहिए।" यदि मनुष्य अपने जीवनके इस कर्तव्यको जान जाएँ; और बाह्य संसारसे अपना सम्बन्ध पहिचान लें तो मानवजातिके दुःख बहुत अशोमें घट नाय.! और जीवन सुखपूर्ण व्यतीत होसके ।' . "दूसरी मुख्य बात भगवान महावीरके हृदयकी अनुपम उदारता है। प्राचीन भूतकालमें इन्होंने जो धार्मिक हलचल पैदा की थी कि जिसमें सर्व जाति और पांतिक एवं सर्व प्रकारकी सभ्यताके मनुष्य सम्मिलित हुए थे, उससे उनका जैनधर्मको उच्च उदारभावमें लेना प्रकट होता है । जैनधर्म कभी भी संकीर्ण न था जैसा' कि वह अब है। राजा, रानी, योडा, ब्राह्मण, शूद्रः आदि सबहीने भगवानके दिव्योपदेशसे लाभ उठाया था। प्रारंभिक बौद्ध धर्मकी भांति जैनधर्मने भी सामान्य जनता ( Afasses )के दुःखपाशोंको दूर किया था, जो पाखण्डी साधुओं द्वारा त्रसित किए जा रहे थे, परन्तु विस्मय है कि थोड़े ही काल पश्चात् स्वयं जैनधर्मानुयायियोंमें क्रियाकाण्ड और मिथ्या अज्ञानका, समावेश होगया । ऐहिक बातोंमें ही धर्म माने जाने लगा है। मामूली आचार पालनेमे ही धर्मपालनकी इतिश्री होजाती है। इसकी इतनी मान्यता बढ़गई है कि यथार्थ सिद्धांत दृष्टिसे ओझल होगए हैं। जो लोग सामान्य जनसमाजके लिए केवल मामूली बातोंको ही उपयोगी बताकर इनका सर्मथन करते हैं, वह इस सामान्य । जनसमाजको उसके समयसे बहुत पीछे घसीटते व्यक्त करते. हैं,
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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