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________________ । भगवान महावीर। भी जैनधर्मका प्रचार हुआ था। जैनधर्म भारतवर्षमें ही सीमित नहीं रहा था। भगवान महावीरके धर्मके प्रचारके विषयमें सर हेनरी रोलिन्सन साहव अपनी "प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रोयल ज्योगराफीकल सोसाइटी, सेप्टेम्बर १८८५ में और अपनी पुस्तक "सेन्टरल ऐशिया" (एष्ठ २४६)में इस बातकी ओर ध्यान आकर्षित करते हैं कि "बोक (Balk) में जो नया विहार और ईटोके अन्य खंडहर निकले हैं वह वहांपर काश्यपोंके अस्तित्वको प्रकट' करते हैं। महावीरस्वामीका गोत्र काश्यप था । और इनके अनुयायी भी कमीर काश्यपोंके नामसे विख्यात हए थे। यह भी ध्यान देनेकी बात है कि भौगोलिक नाम 'केसपिया' (Caspia) काश्यपके सहश है। अतः यह बिल्कल संभव है कि जैनधर्मका प्रचार कैसपिया, रुमानिया और समरकंद, बाक आदिके नगरोंमें रहा था ।" (See Jain Gazette Vols III No. 5 P.13) मुसलमानोके पवित्र स्थान 'जनीरुल अरव मे भी संभवता जैन साधुओंका प्रभाव पड़ा था; क्योंकि अभी हालमें जो एक जीवनी हजरत मुहम्मदकी अंग्रेजीमें प्रगट हुई है उसमें लिखा है कि 'हजरत मुहम्मदके पैदा होनेके पहिले अरबमे नंगे मनुष्य भी रहा करते थे। अस्तु, इन सब वर्णनोसे प्रकट है कि जैनधर्मका ईसाकी पूर्वकी शताब्दियोंमें प्रभावशाली अस्तित्व रहा है। और उसके अनुयायी प्रख्यात मनुष्य थे, जिनकी कीर्ति आज भी भारतीय इतिहासके मध्य वर्णाक्षरों में चमक रही है। उसकी हालत वर्तमानके जैनियोंके धर्म सदृश झासननक न थी। भगवान महावीरके पश्चात् भारतवर्षके राजाओंमें मुख्य राना
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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