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________________ धीर संघका प्रभाव। भदेवके स्मारकमें नं०२ सिकेको ढालनेवाले व्यक्ति द्वारा ही ढाला गया था ऐसा प्रतीत होता है। इनके अतिरिक्त इसी प्लेटका नं. ३ और प्लेट नं० ३ का नं. ५ के सिक्के भी भगवान महावीरके स्मारकरूपमें चले प्रतीत होते हैं। ___ इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान महावीरके नीवनकाल में जैन धर्मका अपूर्व प्रभाव प्रत्येक प्राणीके हृदय में घर करगया था। वह नसाना 'जैनकाल ' कहा जासका है। उनके पवित्र स्मारकमें सिक्कों, अब्द, त्यौहारका चलन उनके इस दिव्य प्रभावका खास उदाहरण है। पीछे जब उनके निर्वाणके उपरान्त संघमें,मतभेद खड़ा होगया, तब उस समयकी दूसरी मुख्य सम्प्रदाय बौद्धका प्रचार हुआ होगा । परन्तु अब उसका नाम ही इस प्रवित्र देशमें अवशेष है । जैन धर्मका अस्तित्व दुःख सहनेपर भी आज भारतमें विद्यमान है, क्योंकि वह साक्षात् सत्य है। भगवान महावीरके दिव्य तीर्थका प्रभाव और प्रवाह भारतवर्षमें ही सीमित नहीं रहा था । जैन सम्राट् चन्द्रगुप्त के जमानेमें सिकन्दरने भारतपर आक्रमण किया था। अपने देशको लौटते हुए सिकन्दर जैन मुनियोंको अपने साथ ले गया था। साथ ही यूनानसे लोग नैनधर्मका अध्ययन करने भारतवर्षमें आए थे, जैसे कि "Historionl Gleanings" नामक पुस्तकमें कहा है कि " श्रीक फिलासफर पैहो (Pyrrho) ईसासे पूर्वकी ४ थी शताब्दिमें यहां आया था और उसने जैन साधुओं (Gymnosophists) से विद्याध्ययन किया था।" ( Page 42 ) इसके अतिरिक्त हम पहिले ही देख चुके हैं रोम, नारवे जैसे सुदूर देशोंमें
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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