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________________ २२४ भगवान महावीर। थे तब उनके गुरु आप्त देव तो अवश्य ही उसी नग्न दिगंबर पावन भेषमें रहते थे यह प्रमाणित है, और जो स्वयं श्वेताम्बर ग्रंथके कथनसे भी व्यक्त है। अस्तु, अब हम श्वेताम्बर आनायकी उत्पत्तिके विषयमें प्रकाश डालेंगे। ____ सबसे पहिले हमें देवसेनाचार्यके दर्शनसार ग्रन्थसे इस विषयमें इस प्रकार विवरण मिलता है। अर्थात् “ विक्रमादित्यकी मृत्युके १३६ वर्ष बाद सौराष्ट्र देशके वल्लभीपुरमें श्वेताम्बर संघ उत्पन्न हुआ। श्री भद्रबाहुगणिके शिष्य शान्ति नामके आचार्य थे, उनका जिनचन्द्र' नामका एक शिथिलाचारी और दुष्ट शिष्य था, उसने यह मत चलाया कि स्त्रियोंको उसी भवमें स्त्री पर्याय ही से मोक्ष प्राप्त होसक्ती है, केवलज्ञानी भोजन करते हैं तथा उन्हें रोग भी होता है, वस्त्र धारण करनेवाला मी मुनि मोक्ष प्राप्त करता है, महावीर भगवान के गर्भका संचार हुवा था, अर्थात वे पहिले ब्राह्मणीके गर्भ में आए, पीछे क्षत्रायणीके गर्नमें चले गए, जैनमुद्राके अतिरिक्त अन्य मुद्राओं या वेषोसे भी मुक्ति हो सक्ती है और प्रामुक भोनन सर्वत्र हरकिसीके यहां करलेना चाहिए। । इसी प्रकार और भी आगम विरुद्ध बातोसे दृषित मिथ्या शास्त्र रचकर वह पहिले नरकको गया।" (देखो जनहितैषी भाग १३ अंक ५-६ पृष्ठ २५२-२५३.) अन्यत्र श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्तिका इतिहास देवसेनसूरि छत भावसंग्रहमें इसप्रकार दिया है । "विक्रमरानाकी मृत्युके १३६ वर्ष बाद सोरठ देशकी वलभी नगरीमें श्वेताम्बर संघ उत्पन्न हुआ। (उसकी कथा इस प्रकार है) उज्जयनी नगरीमें भद्रबाहु नामके
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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