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________________ श्वेताम्बरकी उत्पत्ति २२३ रहते थे" ( देखो नैन हितैषी भाग १३) अतः भगवान अपने दीक्षा कालके प्रारम्भसे ही परमहंस-नग्न-दिगम्बर रहे थे, यह प्रकट है । मि. विमलचरण लॉ० एम० ए० अपनी पूर्वोल्लिखित पुस्तकमें जहां भगवान महावीरके निर्वाण प्राप्तिके पश्चात बौद्ध अन्थके आधारसे संघमें मतभेद होना लिखते हैं, वहां वह यही लिखते हैं कि " इन जैनोंमें साधु और श्रावक दोनों थे, क्योंकि हम देखते हैं कि साधुओंके इन झगड़ोंके कारण 'नात्तमुत्तके गृहस्था अनुयायी:जो. श्वेतवस्त्रं पहिनते थे, वे इन निग्रन्थोंपर दुःखित, क्षुब्ध और कुद्ध थे। इससे प्रकट है कि तबके गृहस्य उसी प्रकार श्वेत वस्त्र पहिलते थे, जिस प्रकारकि आजकलकी श्वेताम्बर सम्प्रदाय ।" और मुनिगण नग्न दिगम्बर भेषमें रहते थे। इसलिए.जब भगवान महावीरके शिष्य मुनिगण दिगंबर भेषमें रहते प्राप्त करना आवश्यक हैं ।......पक्षोंके झगड़ोंसे परे होनेके कारण अन्य बहुतरे शशट छुट जाते है-खासकर उनके धोनेके लिए जलकी भावश्यक्ता नहीं रहती। हमारा भलाई और बुराईका ज्ञान, हमारी नग्नपनेकी जानकारी ही में मुक्तिसे दूर रखती है। उसे प्राप्त करनेके लिए हमें अवश्य ही नग्नताको स्वीकार करना पड़ेगा। जैन निष माई बुराईसे परे है। इसलिए उन्हें खोकी आवश्यक्ता नहीं । " (See the Heart of Jainism. P. 35.) एक श्वेताम्बर विद्वान मि० बाहरके निम्न वाक्य भी कुछ २ इसी बातको व्यक्त करते प्रकट होते है. "Gradually the manners and custor ms of the church changed and the original praotice of going abroad naked was abondoned. The asceties began to roar the "white rose." भतएव इन सब बातोसे यह प्रत्यक्ष प्रकट है कि जैन मुनियों प्राचीन रूप "दिगन्दर" ही है। करते प्रकट se dhuroh cost naked in white robase
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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