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________________ का .. १७० भगवान महावीर। महावीरमें देखा था। तत्पश्चात् उनका सब जीवन इसी ढांचेमें ढल गया ।....उपरोक उद्धृत वाक्योंसे निम्न बातें पूर्णतया प्रमाणित हो जाती हैं: (१) परमात्मन् महावीर वास्तविक ऐतिहासिक व्यक्ति थे न कि कोई कल्पित वस्तु । (२) वह बुद्धदेवके समकालीन थे। (३) परमात्मन् महावीरके सर्वज्ञ होनेका प्रतिपादन जैनियोंने स्पष्टतया किया था, जिनका धर्म यह शिक्षा देता है कि प्रत्येक आत्मामें सर्वज्ञता शक्तिरूपसे है और वह निर्वाण प्राप्तिके समय पूर्णतया व्यक्त हो जाती । (४) मिनेन्द्रके दर्शनसे बुद्धदेवको उस ज्ञानकी प्राप्तिकीतीव्र इच्छा हुई थी जिसके विषयमें उन्होंने बड़े चमकते हुए शब्दोंमें कहा है कि वह सर्वव्यापी श्रेष्ठ आर्यज्ञानका महान और विविक्त दर्शन है जो मनुष्यकी समझमें नहीं आ सका। । (6) बुद्धदेव समझते थे कि ज्ञान तपश्चरणसे प्राप्त हो सक्ता है और उन्होंने उसकी प्राप्तिके लिये उग्र तपश्चरण किया। (६) उनको तपश्चरणसे यथेष्ट फल नहीं मिला, किन्तु उन्होंने अपना प्रयत्न नहीं छोड़ा, बल्कि अपने उद्देश्यको दूसरे मार्गसे जिस प्रकार भी हो सके, प्राप्त करनेका संकल्प कर लिया। - अतः बुद्धदेवको मनुष्यकी समझसे बाहर सर्वव्यापक श्रेष्ठ, आर्यज्ञान के विविक और महान दर्शनके विषयमें किंचित्मात्र भी संदेह नहीं था। उनको ऐसे ज्ञानके विषयमें द विश्वास था। उसके लिए उन्होने कड़ेसे कड़े तपश्चरण वर्षों किए, और शरी
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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