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________________ १५७ 1 " नके तीर्थकालके पिहिताश्रवनामक दिगम्बर मुनिसे दीक्षा ली थी । जैनमुनि होना स्वयं- बुद्धने भी स्वीकार किया है, क्योंकि वह एक:नगह कहता है कि “मैं बालों और दाड़ीको उखाड़नेवाला भी था, और शिर एवं मुखके बाल नौचनेकी परीषह मी सहन करचुका हूं।" ( See Saunders Gotama Buddha P. 15. ) यहांपर संकेत जैनमुनिकी केशलुंचन क्रिया की ओर है । इसके अतिरिक्त 1 Jainism : The early Faith of Asoka नामक पुस्तकमें वर्णन है कि “ तिव्वतभाषाके बौद्ध ग्रन्थ ललितविस्तार में लिखा है कि जब गौतमबुद्धं शिशु था तब अपने सिर में ऐसे चिन्हवाले लक्षण पहिनता था - श्रीवत्स, स्वस्तिका, नंद्यावर्त, और वर्द्धमान । " इन चिन्होंमें पहिले तीन तो सीतलनाथ, सुपार्श्वनाथ तथा अरह नाथ तीर्थङ्करके चिन्ह हैं तथा चौथा श्री महावीरस्वामीका नाम है । अस्तु, इससे भी प्रगट होता है कि शाक्य घराने में जैनधर्मका प्रचार था और इसकी पुष्टि वौद्ध ग्रन्थ महावाके इस कथनसे होती है, कि बुद्धने अपने पहिलेके २४ बौद्धोको देखा था । मल राजतंत्र में भी जैनधर्मके माननेवाले बहुत थे । ९ मल्ल राजा महावीरस्वामीके परमभक्त थे । इन्हीमेंके राजा हस्तिपालके राज्यमे पावानगरीसे भगवान महावीरने मुक्ति-लाभ किया था । अभयकुमार व अन्य राजपुत्र 1 इस प्रकार हम देखते हैं कि समस्त उत्तरीय भारतमें भगवान महावीरके जीवनकालमें ही जैन धर्मका प्रचार होगया था। अब हम भगवानके समकालीन म० बुद्ध और मक्खाली गोशालका भी सम्बन्ध भगवान महावीरलामीसे प्रगट करेंगे ।
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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