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________________ १५६ - भगवान महावीर मांगी। महाराज श्रेणिक मोहके मारे विह्वल होंगए, परन्तु अन्तमें । उन्होंने पुत्रको मुनि होनेकी आज्ञा प्रदान कर दी। ___कुमार अमेय महावीरखामीकै समवशरणमें गणधर गौतमके निकट मुनि हो गए थे। उन्होंने दुर्धर तपश्चरण करके केवलज्ञान प्राप्त कर लिया था। अंतमें कुछ दिनों विहारकर अचित्य अव्याबाध मोक्ष-सुख पाया था। हम देख चुके हैं कि भगवान महावीरके समयमें एक ओर मगध, कौशल, वत्स, काशी और अवन्तीमें राजतंत्र थे, व दूसरी ओर शाक्य, कालाप, कोलीय, मोरीय, मल्ल, लिच्छवी, विदेह इनमें लोकतंत्र शासन था। राजतंत्रोमें मगधमें हम जैन धर्मके प्रचारका वर्णन कर चुके हैं। वत्सदेशकी कौशाम्बी नगरीके नृपति भी जैनधर्मोनुयायी थे, यह भी हम पहिले लिख चुके हैं। और यह भी जान चुके हैं कि वे महावीरखामीके निकट संबन्धी थे। कौशल और काशीमें भी जैन धर्मकी गति थी, यह कल्पसूत्र कथनसे व्यक्त है। जिसमें कहा है कि महावीर भगवानके 'निर्वाणगमनके होंपलक्षमें कौशल और काशीके १८ राजाओंने "और ९ मलक व ९ लिच्छावियोने दीपमालिका उत्सव मनाया था। कलिंगदेशके यादववंशी नृपति नितशत्रु भगवान महावीरके फूफा थे; और वहां भी जैनधर्मका प्रचार था। लोकतंत्र राज्यो में हम विदेह और लिच्छावियोमें जैनधर्मक उत्कट प्रचारका दृश्य देख चुके हैं। अवशेषमें शोक्योंके यहां भी बुद्धके प्रारंभिक “समयमें जैनधर्मका प्रचार "था; ऐसा प्रगट होता है । जैनशास्त्रोंमें कथन है कि म बुद्धने पार्धनाथ भगवा
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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