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________________ क्षत्रचूद भगवान महावीरके संघमें राजषी इससे हमें ज्ञात सामिग्रीके भो भी सम्मिलित थे और वे केवल श्रावकके ही व्रत नहीं पालते थे, बल्कि मुनिधर्मका पालनकर देशमें धर्मका प्रचार करते थे । अनेक प्रख्यात राजाओंने भी भगवानके समवशरणमें दीक्षा ली थी उनमेंसे कुछका वर्णन निम्न प्रकार है ( २५ ) शव चूड़ामणि- जीवंवर । " करणer सुतृप्तिविधायिनः शुभगवन भूपितविग्रहः । ୬ परविभूतियुताः सदुपायिनः कति कति प्रथिता न नराविषाः ॥" "असद भुक्तं राज्यं युवति शतान्यपि तथैव भुक्तानि । 'वर सम्पदोपि चात्मा न खलु विशुद्धः स्मृतो निजानन्दः || येन स्मृतेन झटति प्रकटविनष्टा भवनि रागाद्याः । प्रभवति मुक्तिरधीना चैतन्यामृतपयोधिमग्नानाम् ॥ तद्भ्रातर इह लोके समुपगतनृनन्मसार मणिराशौ । भवितव्य न द: प्रच्युतसारेः प्रमादवश गत्वात् ॥" जैनाचा उपर्युक्त छोकोद्वारा व्यक्त करते हैं कि "इन्द्रियोंको संतृप्त करनेवाले, सुन्दर यौवनभूपित शरीरवाले, उत्कट विभूतिके धारण करनेवाले और बड़ी २ भेटोके ग्रहण करनेवाले कितने २ राजा सारमें प्रसिद्ध नहीं हुए? ” "अनेकवार राज्यभोग किया, 1
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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