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________________ T bes. भगवान महावीर । A धर्मका प्रचार किया | पवित्र विहारके ही उपलक्षमें वह प्रान्त नेहाँपर आपका समवशरण आया था और नहाँसे आपको निर्वाणको लाभ हुआ था बिहार (Modern Bihar) कहलाया । आप वर्षाऋतु चार्तुमासके निमित्त एक ही स्थानंपर अवश्य रहते ये किन्तु वास्तवमे यह जीवन दिव्य कर्तव्य और उत्कृष्ट तपश्चरणका था । यह सम्पूर्णकाल आपने धर्मका स्वरूप समझाने में व्यतीत किया था। आपके वीरसंघका आश्रयं उत्तरीय भारतके बड़े २ राजाओं ने लिया था उनका वर्णन हम अगाड़ी करेंगे। " महावीर भगवानको अपने गत बारह वर्षे तपश्चरणंकी उपयोगिताका विश्वास था और आपके वह दिवस वृथा व्यतीत नहीं हुए थे, क्योंकि आपको इसके अंतमें नौ लब्धियोका (= (१) अनन्तदर्शन (२) अनन्त ज्ञान (३) क्षायिक सम्यक्त्व (४) क्षायिक 10 चारित्र (९) अनन्त दान (६) अनन्त लाभ (७) अनंत भोग (८) अनन्त उपभोग और (९) अनन्त वीर्य) और अनन्त चतुष्टयका लार्म हुआ था। तप और ध्यानकी महिमासे ही आपको कैवल्यपद प्राप्त हुआ था । इस बिहारके वर्णनमें दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायकि आचार्य करीब २ एक मत हैं । विहारका वर्णन करनेके पहिले यह घटना उल्लेखनीय है कि भगवानके केवलज्ञान प्राप्त होनेके पश्चात् सहसा ही वाणी (श्रुति-उपदेश ) नहीं खिरने लगी थी; नर्वतक कि इन्द्रभूति गौतम नामक ब्राह्मण उनके समवशरणमें आकर मुख्य गणधरकी पदवीपर आसीन नहीं होगया था, इसका उल्लेख हर्म अगाड़ी पूर्णरूपेण करेंगे । इन्द्रभूति गौतम भगवानके'
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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