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________________ अिस प्रयोगका आगे क्या हुआ, सो यहाँ बतानेकी ज़रूरत नहीं। रवीन्द्रबाबू कलकत्तेसे आये | अन्होंने जिस प्रयोगको आशीर्वाद दिया। कहा कि अिस प्रयोगसे संस्थाको और बंगालियोंको बड़ा लाभ होगा। धीरे धीरे नावीन्य कम होता गया। लड़के यकने लगे। मि० पियर्सनने भी मेरे पास आकर कहा- 'काम तो अच्छा है, लेकिन पढ़ने लिखनेका अत्साह नहीं रह जाता है।' बड़ी बहादुरीसे हमने चालीस दिन तक अिसे चलाया। फिर छुट्टियों आ गयीं। छट्टियों के बाद किसीने अिस प्रयोगका नाम भी नहीं लिया। मै भी शान्तिनिकेतन छोड़कर चला गया । थोडे ही दिनोंमें गांधीजी बर्मासे लौटे । हमारा प्रयोग चल ही रहा था । जितनेमें पुनासे तार आया : गोखलेजीका देहान्त (फरवरी १९१४ ) हो गया । गांधीजीने तुरन्त पूना जानेका तय किया। अिसके पहले गोखलेजी अनसे कहते थे - 'सर्वेण्ट्स आफ अिण्डिया सोसायटीके सदस्य बनो ।' लेकिन गांधीजीने निश्चय नहीं किया था। अपने राजकीय गुरुकी मृत्युके पश्चात् झुनकी यह अतिम अिच्छा गांधीजीके लिमे आज्ञाके समान हो गयी। वे पूना गये, और सर्वैट्स आफ अिण्डिया सोसायटीमे प्रवेश पानेके लिओ अर्जी दे दी। अर्जी पाकर गोखलेजीके अन्य शिष्य घबरा गये। वह सारा किस्सा नामदार शास्त्रीजी ने दोतीन जगह अपनी अप्रतिम भाषामें वर्णन किया है । असे यहाँ देनेकी ज़रूरत नहीं । सार यह था कि वे जानते थे कि गांधीजीको वे हजम नहीं कर सकेंगे। किन्तु गोखलेजीके ही (creed) (राजनीतिक सिद्धान्तों) को गांधीजी मानते थे । औसी हालतमें अनकी अर्जी अस्वीकार कैसे की जाय, अिसी असमजसमें वे पड़े थे। परिस्थिति ताड़कर गांधीजीने ही अपनी अर्जी वापिस ले ली और अपने गुरुमाअियोंको संकटसे मुक्त कर दिया। फिर भी अवैधरूपसे सोसायटीके जलसोंमें वे अपस्थित रहते, और संस्थाको अन्होंने समय समय पर मदद मी काफी दी। 4 .
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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