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________________ वैसा ही किया गया। और फिर मैं तो राक्षस जैसा काम करने लगा। बारह-अक बजे यह सब तय हुआ होगा। तीन बजे हमने चार्ज लिया और शामको लड़कोंको खिलाया। गांधीजी स्वय आकर काम करने लगे। शाक सुधारनेका काम अन्होंने किया। रोटियाँ तैयार करनेका काम मेरा था। मेरी रोटियाँ भितनी लोकप्रिय हुी कि जहाँ छह रोटिया बनती थीं, वहाँ दो सौ बनने लगी। पत्थरके कोयलेके चूल्हे, सुनपर लोहेकी गरम चादरें, और अनपर मैं दो दो रोटियाँ अकपर अक रखकर हिराफिरा कर सेंकता था। जिस तरह चार जुफन याने अक साथ आठ रोटियोंकी ओर मैं ध्यान देता था। विद्यार्थी रोटियाँ बेलवेलकर मुझे देते थे। गूंघनेका काम चितामणि शास्त्री कर देते थे। सुबहका नाश्ता दूध केलेका था। वर्तन मांजनेके लिझे भी बड़े विद्यार्थियोंकी अक टुकड़ी तैयार हो गयी थी। सुनका भी सरदार मै ही था। बर्तन मॉजनेवालोंका अत्साह कायम रहे, अिसलिओ वहॉपर कोी विद्यार्थी अन्हें कोसी रोचक अपन्यास पढ़कर सुनाता था, कभी कोमी सितार बनाता था। मेरी यह योजना शान्तिनिकेतनवाले रसिक अध्यापकोंको बहुत ही अच्छी लगी। मिस तरह दो चार दिन गये और गांधीजी अपने मित्र डाक्टर प्राणजीवन मेहतासे मिलनेके लिओ बर्मा (ब्रह्मदेश) जानेके लिओ तैयार हो गये। हरिहर शर्माने कहा-'मैं भी अिनके साथ जागा ।' (शर्माजी पहले डा. प्राणजीवन मेहताके यहाँ लड़कोंके टयूटर रह चुके थे।) मुझे बड़ा गुस्सा आया । मैं शिकायत करने गांधीजीके पास गया। गांधीजीने मेरा काम तो देखा ही था। उन्होंने ठढे पेटे मुझे कहा,- 'तुम तो सब कुछ चला सकोगे। लेकिन अगर तुम्हारी अिच्छा है, तो अण्णाको चार छह दिनके लिझे यहाँ रख जा । वे मेरे पीछे आयेंगे।' मै और भी झल्लाया। मैंने कहा- 'जिम्मेदारी तो अन्होंने ही ली थी। अब यह छोड़कर कैसे जा सकते हैं ? और अगर अन्हें जाना ही है, तो चार छह दिनकी मेहरबानी भी मुझे नहीं चाहिये । र अन्हें कल जाना है, तो आज चले जायें।' गांधीजीने देखा था कि मैं तो नये प्रयोगमे रंगा हुआ हूँ। कुछ भी दया किये बगैर अन्होंने कहा-'अच्छा, तब तो ये मेरे ही साथ जायेंगे।' भौर सचमुच दूसरे ही दिन अण्णा गांधीजीके साथ चले गये !!
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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