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________________ । १०६) कुलवर बहुलता से इक्ष्वाकुभूमि अर्थात् विनता नगरी की माने मे निवास करता था। यह भूमि काश्मीर देश के परे थी क्योकि विनता नगरो के चारों दिशा में चार पर्वत थे। जिसमें पूर्व दिशा में अष्टापद अर्थात् कैलाशगिरि था । दक्षिण दिशा मे महा शैल्य था। पश्चिम दिशा में सुर शैल्य । उत्तर दिशा मे उदयाचल पर्वत था। पृष्ठ नं० ४६६ में । इसका समर्थन आधुनिक शोधकर्ताओं के लेख से भी होता है । जैसा कि सरस्वती पत्रिका सन् -१६३७ जनवरी के पृष्ट २१ मे लिखा है- ताम्र युग पाषाण युग में भी उदीच्य प्राव्य दो जाति होना माना । यह नूह का प्रलय का जमाना था। मनुष्यों का विकास भारत से ही हुआ और वहाँ से संसार भर मे फैला । प्रलय काका कलकरन्दा ने तो ईसा के पूर्व ४२०० वर्ष पूर्व माना। लेकिन यह ३४७५ वर्ष पूर्व का मानने है। पाषाण युग मे मनु य नर वानर थे पाषाण युग के पश्चात् मानव जाति में धातु का युग प्रारम्भ हुआ। धातु युग का प्रारम्भ ताम्र युग से हुया । कश्मीर के पश्चिम सीमा चित्रालय में घास से गेहुँ जव पैदा होना जर्मन के अन्वेषक दल ने अनुसन्धान किया। कृपि का जन्म स्था. चित्रान है। वहाँ से दक्षिण पजाव मे आये। जहाँ सप्त नदियाँ बहती है उसका सप्त सिन्धु नाम रक्खा। उनमे सरस्वती व सिन्धु सब मे बड़ी । सिन्धु से भी सरस्वती. वड़ी। सरस्वती उस समय पायावर्त को दो सीमाओं से विभक्त करती थी। इसके पश्चिम ओर का भाग उदीच्य तथा पूर्व ओर का भाग प्राच्य कहलाने लगा। उत्तर भारत के ब्राह्मण अाज .भी प्राच्य और उदीच्य दो भागों में विभक्त है । कान्यकुब्ज, मैथिल आदि प्राच्य, पञ्जाव, सिन्धु, र राष्ट्र काठियावाड और गुजरात के ब्राह्मण उदीच्य इन दो जातियों से सारे ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई उदीच्य प्रदेश सरस्वती के पश्चिम तट देवयोनि वृत्त से मेसोपोटामिया तक फैला और प्राच्य देश इसके पूर्वी तट से बङ्गाल तक फैला । चित्राल कश्मीर ऋग्वेद मे ऋषि
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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