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________________ ए जाणो जेहुँ नो सर्व प्रकारे भक्ति रहित थयोए वो सोचकर वालाग्योते जोड इन्द्र महाराज ने भरत को कहा कि तुम्हारे से अधिक गुणवाले होय तेने यह अहार जमाडो पछी भरतेपण ते प्रहार, श्रावको ने नमाडो इटाथी ब्रह्म भोजन चालु थयो । हवे भरत गजा सदा सर्वदा श्रावको ने जमाडे छेकेटलाकका लपछी जेवारे धणा जमनाग्यवाते वारे परीक्षा करीने सर्व ने सेलाणीना कांगणी रत्न नीज नोइ अपीत था देवगुरु अने धर्म रूपी त्रण तत्व सम्बन्धी त्रण रेखा प्रत्येक श्रावक ने करी ती हाथी जनोइ आपवानी चाल पड़ी इहा ऋषभदेव की स्तुनि का ४ वेद थया भरत के पाटे आदि त्ययशा ने सोने की जनऊ करी ने एमज जमाडो एमज आठ पाट लगे श्रावक जमाडा इस इतिहाससे भी पूर्व लिखा इतिहास का समर्थन होता है। आगे १६ सस्कारों के कराने बाबत'आपको मालूम होगा कि सस्कार कराना कितना जरूरी है जिसको तीर्थ करोतक को धारण करना पड़ा जैसा कि समस्थ परम थे के जानकार श्रीभगवान अर्हतमी गर्भ से लेकर राज्यभिषेकादि परयन्त संस्कारों को अपने देहमे धारण करते हुए तथा देश विरति रूप गृहस्थ धर्म में प्रतिभाव वह सम्पकत्वारोपण रूप आचार आचर्ण करते हुए तथा निमेश मात्र शुल्क ध्यान करके प्राप्य केवल ज्ञान के वास्ते दीर्घ काल तक यति मुद्रातपः चरणादि धारण करते हुए तथा केवल ज्ञान होने बाढ पर की उपेक्षा करके रहित चिदानन्द रूप भगवान ममव सरण में विराजकर धर्म देशना, गणधर स्थापना और संसयव्य व च्छेद तथा देवादिकों के किये हुए छत्र चाम रादि अति शययुक्त सिंहासन पर विराज कर सर्व को आचार में
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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