SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४) इस सारस्वत समुद्र में अपने मतिमन्थान को दाल करें चिर आन्दोलन किया है वे ही जानते हैं। (१२) तब तो सज्जनों ! आप अवश्य जान गये होंगे कि जैन मन तत्र स प्रचलित हुधा जद से संसार सृष्टि का आ रम्भ हुआ। (१३) मुझे तो इसमे किसी प्रकार का भी उन नहीं है कि जैन दर्शन, वैदान्तादि दशों से पूर्व का है भादि। इत्यादि २ ऐसे बहुत से प्रमाण हैं परन्तु प्रन्थ विस्तार भय से अधिक न लिख मै अपनी लेखनी को विश्राम देता हूँ। इन प्रमाणों से श्राप महानुभावों को जैन धर्म के महत्व तथा प्राचीनता का.बोध होगया होगा अब अागे के लिये इस विश्वोपकारी, विशाल, कल्याणकारी धर्म के पवित्र कुलाकार प्रवृत्ति मार्ग के चलाने वाले ग्रहस्थ गुरु और कल्याणकारी मोक्ष मार्ग के गाइड धर्म गुरु निग्रन्थों को उत्पत्ति का इतिहास सुनाना अत्यावश्यक समझ वर्णन करता हूँ। दूसरा अध्याय [ जिसमें हर दो गुरुओं की उत्पत्ति का वर्णन- कथानुयोग से] आप महाशय जानते हैं कि जैन ग्रन्थों में ज्ञान का अक्षय भएडार है। उसके ४ भाग किये गये हैं। (१) द्रव्यानुयोग (२) कथानुयोग (३) गणितानुयोग (४) चरणकरणानुयोग।
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy