SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ () मैं आपके सन्मुख आगे चलकर स्यादवाद का रहस्य कहूँगा तब आप अवश्य जान जायेंगे कि वह अभेद किला है, उसके अन्दर वादि, प्रतिवादियों के माया मय गोले प्रवेश नहीं कर सकते परन्तु साथ ही खेद के साथ कहना पड़ता है कि अब जैन मत का बुढ़ापा आगया है मब उसमें इने गिने ग्रहस्थ विद्वान रह गये हैं। (e) मन्जनों ! एक दिन वह था कि जैन सम्प्रदाय के प्राचार्यो को हुँकार से दसों दिशाएं गून्ज उठती थी। (१०) सजनों ! जैसे काल चक्र ने जैन मत के महत्व को ढोंक दिया है वैसे ही उसके महत्व को जानने वाले लोग भी अब नहीं है। (११) रजबसा चेसूर की वैरी के बखान:- यह किसी भाषा कवि ने कहा है । सननो ! आप जानते हैं कि मैं उस वैष्णव सम्प्रदाय का आचार्य हूँ। और साथ ही उसकी तरफ कड़ी नजर से देखने वालों का दीक्षक मी हूँ। तो भी भरी मजलिस में मुझे यह कहना सत्य के कारण आवश्यक हुआ है कि जैनों का ग्रन्थ समुदाय सारस्वत महा सागर है उसकी ग्रन्थ संख्या उतनी 'अधिक है कि उनका सूची-पत्र भी एक निवन्ध हो जा यगा । उस पुस्तक समुदाय का लेख- और लेख्य कैमा गम्भीर है, युक्ति पूर्ण, भावपूर्ण, विषद और अगाध है इसके विषय में इतना ही कह देना उचित है कि जिन्होंने
SR No.010402
Book TitleMahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaktavarlal Mahatma
PublisherVaktavarlal Mahatma
Publication Year1945
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy