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________________ ६२ कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न उत्तर, दक्षिण, ऊपर और नीचे, इन छह दिशाओंमें ( से किसी भी दिशामें ) जाते हैं । (पं० ७१-३) ५. मार्ग दर्शन, ज्ञान, चारित्र- मुमुक्ष पुरुषको जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष - इन नौ पदार्थोका ज्ञान होना आवश्यक है। ज्ञानियोंने इन नौ पदार्थोंका स्वरूप जिस प्रकारका निरूपण किया है, उस स्वरूपपर श्रद्धा या रुचि होना सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन कहलाता है। इन पदार्थोंके सच्चे ज्ञानको सम्यग्ज्ञान कहते हैं और उस ज्ञानके प्रतापसे विषयोंके प्रति लम्पटतासे रहित होकर समभाव-पूर्वक प्रवृत्ति करना चारित्र - सम्यक् चारित्र है। श्रद्धा और ज्ञानसे युक्त तथा राग-द्वेषसे रहित चारित्र ही मोक्षका मार्ग है। मोक्षके अधिकारी एवं विवेकबुद्धिसे सम्पन्न पुरुष मोक्षमार्ग पाते हैं । ( पं० १०६-८) आस्रव और संवर - आस्रव अर्थात् द्वार; जिन पापक्रियाओंसे आत्माको कर्मबन्धन होता है उन्हें आस्रव या कर्मबन्धनका द्वार कहते है। संयम-मार्गमें प्रवृत्त होकर इन्द्रियोंका, कषायों का और संज्ञाओं का निग्रह किया जाय, तो ही आत्मामें पापके प्रवेश करनेका द्वार बन्द होता है - . संवर होता है। जिसे किसी भी वस्तुपर राग, द्वेष या मोह नहीं है और जिसके लिए सुख और दुःख समान हैं, ऐसे भिक्षुको शुभ या अशुभ कर्मका स्थितिबन्ध है। स्वभाव उत्पन्न होनेके साथ ही कर्म-परमाणुओंमें तीन या मन्द फल देनेकी शक्ति भी उत्पन्न होती है, वह शक्ति 'अनुभागबन्ध' कहलाती है। स्वभावके अनुसार उन परमाणुओंका अमुक-अमुक परिमाय में बँट जाना प्रदेशबन्ध कहलाता है। १. क्रोध, मान, माया और लोभ, यह चार वृत्तियाँ जीवके स्वभावको मलिन करने के कारण कषाय कहलाती हैं। २. आहार, भय, मैथुन और परिग्रह, यह चार संशाएँ हैं।
SR No.010400
Book TitleKundakundacharya ke Tin Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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