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________________ द्रव्यविचार है तथा चेतनागुणसे युक्त है। यहाँ यह शंका की जा सकती है कि रूप आदि गुणोंसे युक्त मूर्त द्रव्य, स्निग्धता या रूक्षताके कारण आपसमें बद्ध हो सकता है; परन्तु स्निग्धता-रूक्षताहीन अमूर्त आत्मा जड़ - भौतिक द्रव्यरूप कर्मोंको अपनेसे किस प्रकार बद्ध कर सकता है ? मगर यह शंका ठीक नहीं है। आत्मा अमूर्त होनेपर भी रूपी द्रव्योंको और उनके गुणोंको जैसे जान सकता और देख सकता है, उसी प्रकार रूपी द्रव्यके साथ उसका बन्ध भी हो सकता है। ज्ञान-दर्शनमय आत्मा विविध प्रकारके विषयोंको पाकर मोह करता है, राग करता है अथवा द्वेषयुक्त होता है। यही आत्माके साथ कर्मका बन्ध होना है। जीवसे जिस भाव इन्द्रियगोचर हुए पदार्थको देखता है और जानता है, उससे वह रंजित (प्रभावित ) होता है और इसी कारण जीवके साथ कर्मका बन्ध होता है। ऐसा जैन शास्त्रका उपदेश है । यथायोग्य स्निग्धता या रूक्षताके कारण जड़ भौतिक द्रव्योंका आपसमें बन्ध होता है और रागादिके कारण आत्माका बन्ध होता है । इन दोनोंके अन्योन्य अवगाहमें पुद्गल और जीव दोनों हेतुभूत हैं । जीव स्वयं पारमार्थिक दृष्टिसे मूर्त नहीं है, परन्तु अनादिकालसे कर्मबद्ध होनेके कारण मूर्त बना हुआ है। यही कारण है कि वह मूर्त कर्मोको अपने साथ बाँधता है और स्वयं उनके साथ बँधता है। इन कर्मोंके - फलस्वरूप जड़ विषयोंको जड़ इन्द्रियों-द्वारा जीव भोगता है। (पं० १३२-४) आत्मा प्रदेशयुक्त है। आत्माके प्रदेशोंमें पुद्गलकाय यथायोग्य प्रवेश करता है, बद्ध होता है, स्थिर रहता है और फल देनेके पश्चात् अलग हो जाता है। जीव जब रागयुक्त होता है तब कर्मोका बन्द करता है, जब रागरहित होता है तब मुक्त होता है। संक्षेपमें यही जीवके बन्धका स्वरूप है। जीवके अशुद्व परिणामसे बन्ध होता है। वह परिणाम राग, द्वेष और मोहसे युक्त होता है। इनमें मोह और द्वष अशुभ हैं; राग शुभ और अशुभ दोनों प्रकारका होता है। परके प्रति शुभ परिणाम होनेसे
SR No.010400
Book TitleKundakundacharya ke Tin Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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