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________________ ४४ कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रन रूपसे जाननेवाले व्यापारको दर्शन कहते हैं । द्रव्य और गुणकी अभिन्नता - चेतनागुण जीवसे सदा-सर्वदा अभिन्न है | ज्ञानी ज्ञानगुण भिन्न नहीं है, वस्तुतः दोनोंमें अभिन्नता है । द्रव्य अगर गुणोंसे भिन्न माना जाय और गुण द्रव्यसे भिन्न माने जाये तो या तो एक द्रव्यकी जगह अनन्त द्रव्य मानने पड़ेंगे अथवा द्रव्य कुछ रहेगा ही नहीं । परमार्थके ज्ञाता, द्रव्य और गुणके बीच अविभक्त अनन्यत्व भी स्वीकार नहीं करते और विभक्त अन्यत्व भी नहीं मानते; किन्तु विभिन्न अपेक्षाओंसे भेद और अभेद स्वीकार करते हैं । उल्लेख, आकृति, संख्या और विषयसे सम्बन्ध रखनेवाला भेद जैसे दो भिन्न वस्तुओंमें हो सकता है, उसी प्रकार अभिन्न वस्तुओंमें भी सम्भव है । धनवाला होनेके कारण मनुष्य धनी कहलाता है और ज्ञानवान् होनेसे ज्ञानी कहलाता है । परन्तु पहले उदाहरणमें घन, धनीसे भिन्न है; अतएव दोनोंमें सम्बन्ध होनेपर भी दोनोंकी सत्ता पृथक् पृथक् है । इससे विपरीत ज्ञान, ज्ञानीसे भिन्न नहीं है । ऐसी अवस्थामें इनमें भेदका व्यवहार होनेपर भी बोलने में भेद होते हुए भी, भेद नहीं वरन् एकता है । ज्ञानो और ज्ञान सर्वथा भिन्न हों तो दोनों ही अचेतन ठहरेंगे। जिन्होंने यह स्वीकार नहीं किया है उनके मतमें वस्तुतः ज्ञानसे भिन्न होनेके कारण १. 'देवदत्तकी गाय' यह व्यवहार परस्पर भिन्न दो वस्तुओंके विषयमें है, किन्तु 'वृक्षकी डाली' या 'दूधको सफेदी' यह दो अभिन्न वस्तुयोंके विषयमें है । 'मोटे आदमीकी मोटी गाय' यह श्राकृतिभेद दो भिन्न वस्तुओं के सम्बन्ध में है और 'बड़े वृक्षकी बड़ी शाखा' या 'मूर्त द्रव्यका मूर्त गुण' यह मैद अभिन्न वस्तुओं-सम्बन्धी है । 'देवदत्तकी सौ गायें यह संख्यागत मेद भिन्न वस्तुओं से सम्बन्ध रखता है, परन्तु 'वृक्षकी सौ शाखाएँ' यह अभिन वस्तुओं से सम्बन्ध रखता है । 'गोकुल में गाय' यह विषयगत मेद भिन्न वस्तुओंके सम्बन्धका है परन्तु 'वृक्षमें शाखा' या 'दूधमें सफेदी ' यह अभिन्न वस्तुसम्बन्धी विषयगत भेद है ।
SR No.010400
Book TitleKundakundacharya ke Tin Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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