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________________ २० कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न चौरासी पाहुड - कहा जाता है कि कुन्दकुन्दाचार्यने चौरासी पाहुड ग्रन्थोंकी रचना की थी। पाहुड ( प्राभृत ) अर्थात् प्रकरण । आज जो भी पाहुड उपलब्ध हैं, उनसे जान पड़ता है कि वे अन्य विभिन्न विषयोंपर छोटे-छोटे प्रकरणके समान होंगे। कुन्दकुन्दाचार्य के समयमें दक्षिणके जैनसंघको अपने आचार-विचारके लिए जब शास्त्र-ग्रन्थोंकी आवश्यकता पड़ी होगी, तब कुन्दकुन्दाचार्य-जैसेको, गुरुपरम्परासे उन्होंने जो सुना और उपलब्ध किया था उसे, ग्रन्थबद्ध कर देनेकी आवश्यकता पड़ी होगी। हालाँकि इस समय तो उन चौरासी पाहुडोंमें से सबके नाम तक नहीं मिलते। २ दशभक्ति - इन दशभक्तियों में से आठ भक्तियोंकी प्रति उपलब्ध है और शेष भक्तियोंके अंतिम प्राकृत फ़िकरे ही मिलते हैं। उनमें तीर्थकर, सिद्ध, अनगार, आचार्य, पंचपरमेष्ठी वगैरहकी स्तुति है। उसमें जो गद्य-वाक्य हैं वे श्वेताम्बरोंके आगमग्रन्थ 'प्रतिक्रमणसूत्र' और 'आवश्यकसूत्र' तथा 'पंचसूत्र'से मिलते-जुलते हैं। अतएव इन दशभक्तियोंका अधिकांश भाग दिगम्बर-श्वेताम्बर-विभाग होनेसे पहलेका होना चाहिए और दिगम्बरों तथा श्वेताम्बरोंके द्वारा स्वतन्त्र रूपसे संगृहीत किया हुआ होना चाहिए। हो सकता है कि परम्परासे चले आये गद्य भागोंको समझाने और उनका विवरण देनेके लिए कुन्दकुन्दाचार्यने पद्य भाग लिये हों या एकत्रित किये हों। ३ आठ पाहुड-दर्शन, चारित्र, सूत्र, बोध, भाव, मोक्ष, लिंग और शील इन आठ विषयोंपर ये स्वतन्त्र पद्यग्रन्थ हैं। ४ रत्नसार (रयणसार)-इसमें १६२ श्लोक है। इनमें एक दोहा और शेष सब गाथाएँ हैं । इस ग्रन्थमें गृहस्थ तथा भिक्षुके धर्मोका वर्णन किया गया है। यह ग्रन्थ कुन्दकुन्दाचार्य-रचित होनेकी बहुत कम सम्भावना है। अथवा इतना तो कहना ही चाहिए कि उसका विद्यमान रूप ऐसा है जो हमें सन्देहमें डालता है। इसमें अपभ्रंशके कुछ श्लोक है
SR No.010400
Book TitleKundakundacharya ke Tin Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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