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________________ उपोद्घात लित किया है। यही कारण है कि कौटिल्यके अर्थशास्त्र और कुरलमें बहुत-सी बातोंकी समानता दिखाई देती है। इतनी लम्बी चर्चा के बाद, कुन्दकुन्दाचार्यके कालनिर्णयके विषयमें हम इतना निश्चित कर सके कि पट्टावलियोंकी प्राचीन परम्परा उन्हें ई० स० पूर्व पहली सदीके मध्यमें या ई० स० की पहली सदीके मध्यभागमें रखती है। मरकराके ताम्रपटोंके आधारपर उनका समय पीछेसे पीछे तीसरी शताब्दीका मध्यभाग सिद्ध होता है। और यदि वे (कुन्दकुन्दाचार्य) और कुरल ग्रन्थके लेखक एलाचार्य एक ही व्यक्ति हों तो ई० स० के प्रारम्भिक अर्सेमें कुन्दकुन्दाचार्य हो गये हैं, ऐसा माननेके लिए हमें पर्याप्त कारण मिलते हैं । ३. कुन्दकुन्दाचार्यके ग्रन्थ कुन्दकुन्दाचार्यके नामपर अनेक ग्रन्थ मढ़े हुए हैं। उनमें से बहुत-से तो ऐसे हैं जिनका नाममात्र ही उपलब्ध है; और बाक़ी जो ग्रन्थ कुन्दकुन्दाचार्यके कहलाते हैं, उनमें से अधिकांशमें शायद ही कहीं कुन्दकुन्दाचार्यने लेखकके रूपमें अपने नामका उल्लेख किया है। कुछ ग्रन्थोंको तो टीकाकारके कहनेसे ही कुन्दकुन्दाचार्यका मानना पड़ता है; और शेषके विषयमें इतना ही कहा जा सकता है कि, यह ग्रन्थ कुन्दकुन्दाचार्यके हैं, ऐसी परम्परा है। बहुत सम्भव है कि पीछेके बहुत-से लेखकोंने अपने ग्रन्थ कुन्दकुन्दाचार्य के नामपर मढ़ दिये हों, इस स्थितिमें हमारे पास एक ही मार्ग रह जाता और वह यह कि जिस ग्रन्थके विषयमें परम्परामें विरोध हो अथवा कोई दूसरा लेखक उस ग्रन्थको अपनी कृति बतलाता हो तो उस ग्रन्थको शंकास्पद मानना चाहिए।' १. ऐसे ग्रन्थोंमें षटखण्डागम टीका तथा मूलाचार हैं। षट्खण्डागम टीका कुन्दकुन्दके शिष्य कुन्दकीर्तिने लिखी है यह श्रुतावतारमें विबुध श्रीधर सूचित करते हैं । पर यह सम्प्रति अनुपलब्ध है। मूनाचारके टीकाकार बसुनन्दि इस ग्रन्थको वट्टकेरिकृत लिखते हैं। इसलिए दोनों ग्रन्थोंका कुन्दकुन्दकृत होना शंकास्पद है।
SR No.010400
Book TitleKundakundacharya ke Tin Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel, Shobhachad Bharilla
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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