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________________ [ ७४ ] श्राध्यात्मिकता का आदेश करता है वहाँ पर अपने सांसारिक व्यवहार एवं गृहस्थ धर्म-संचालन के लिये वह मर्यादित जीवन का भी यथेष्ट विधान करता है । परन्तु इतनी गृढ़ता एवं विचारशीलता के अध्ययन का हमारी वर्तमान जैन समाज में प्रभाव होने के कारण सम्प्रति कतिपय जटिल समस्याएँ इस प्रकार उपस्थित होती हैं, जिनका समाधान प्रति सरल होते हुए मी दुष्कर सा जान पड़ता है । वस्तुतः मार्ग दो प्रकार के होते हैं - १निवृत्ति मार्ग तथा २ प्रवृत्तिमार्ग | दूसरे शब्दों में कहा जाय तो उत्सर्ग मार्ग तथा अपवाद मार्ग भी कहा जा सकता है | प्रथम मार्ग जिसका कि नाम उत्सर्ग मार्ग है, श्रमणधर्म कहा जाता है - इस मार्ग का श्राराधक त्रिकरण एवं योगत्रय रूप सावद्य कार्यों से सर्वथा मुक्त रहता है जब कि दूसरे अपवादमार्ग का पालक धर्म की आराधना तो करता है परन्तु सांसारिक मोह - पाशादि बन्धनों से सर्वथा निवृत्ति प्राप्त नहीं कर सकता । उसे अपने गृहस्थधर्म के संचालनार्थ, कुछ अपवाद मार्गों का अवलम्बन लेकर उपयोगपूर्वक धर्म की शोध करनी पड़ती है । इसी धर्ममार्ग का नाम श्रावकधर्म है । जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, प्रत्येक व्यक्ति उत्सर्ग मार्गानुसारी नहीं हो सकता है। दोनों वर्गों में से एक वर्ग श्रपवाद मार्गानुसारी होकर अपने लक्ष्यविन्दु की सिद्धि का लाधक बनता है । अत्र विचार इस बात का करना है कि
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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