SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३७ ] मान्यता अकाओक धर्म रूपे प्रगट नथी थती. सैकाओ सुधी लोकमानसना विचारो जुदां जुदां स्वरूप पकड़े छे, अने धीरे धीरे अक वखत अवो आने छ के ज्यारे अविचारो संकलित अने संबद्ध थईने एक स्थाई विचारशाखा अने धर्म रूपे नियत थाय छे. अटले जैनधर्मना मूल तो इ० स० पू० ७५० थी पण उंडा होवा जोइये. यशो जेम जेम बाह्य आचारने अगत्य प्रापवा लाग्या, अने प्रांतरिक शुद्धि जेम जेम नाबूद थती गई तेम श्रेक लोकमत अवो उभो थयो होवो जोइये के बाह्य कर्मकांड निःश्रेयस् तरफ नथी लई जतो. यशोमां सेंकडो बलदो, बकरी, गायोनो वध कोईनी नीति भावनाने जरुर स्पो हशे, अने त्यांज जैनधर्मनां मूल छे-हिंसाना प्रखर विरोध रूपे श्रे स्थपायो हशे. यशनी अने यज्ञ बहारनी अनेकविध हिंसा सामे लोको जरूर विचार करता थई गया हशे. श्राम जैनधर्म लोकमतना श्रेक प्रवाह तरिके उभो थयो हतो; अने हिंदु जीवन तथा शास्त्रो ऊपर तेनी ऊडी असर पडी होवी जोइये श्राने माटे Dr. F. otto schrader. ना अंक लेखमांथी नीचेन विस्तत अवतरण आवश्यक छे. "अहिंसानो आवो उत्कट मार्ग अनुक्रम वगर अकदम उत्पन्न थाय भाग्येज मानी शकाय तेवं छे; तेथी तेमज महावीर अने पार्श्वनाथ पण आमांना घणा नियमो ऊपर भारमूकताहता तेथी; पापणे रेवी श्रेक कल्पना तरफ दोराईए छीए के बुद्धनी पूर्व चे शतक के तेथी पण पहेलां (अटले
SR No.010399
Book TitleKrushi Karm aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherShobhachad Bharilla
Publication Year
Total Pages103
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy