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________________ निवेदन | पाठक ! यह दूसरे कर्मग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद मूल नथा छाया सहित आपकी सेवामें उपस्थित किया जाता है । पहिले कर्म ग्रन्थ के बाद दूसरे कर्मग्रन्थ का अध्ययन परमावश्यक है । क्योंकि इस के विना पढ़े तीसरा आदि अगले कर्मग्रन्थोंमें तथा कम्मपयडी, पञ्चसंग्रह आदि आकर ग्रन्थों में प्रवेश ही नहीं किया जा सकता । इस लिये इस कर्मग्रन्थ का भी महत्त्व बहुत अधिक है । यद्यपि इस कर्मग्रन्थ की मूल गाथायें सिर्फ़ चौतीस ही हैं तथापि इतने में प्रचुर विषय का समावेश ग्रन्थकार ने किया है । श्रत एव परिमाण में प्रन्थ बडा न होने पर भी विषय में बहुत गंभीर तथा विचारणीय है । 1 А इस अनुवाद के प्रारंभ में एक प्रस्तावना दी हुई है जिस मैं दूसरे कर्मग्रन्थ की रचना का उद्देश्य, विषय-वर्णन - शैली, विषय-विभाग, 'कर्मस्तव' नाम रखने का अभिप्राय इत्यादि विषय, जिन का सम्बन्ध दूसरे कर्म ग्रन्थसे है, उन पर थोडा, पर श्रावश्यक विचार किया गया है। पीछे गुणस्थान के सामान्य स्वरूपके सम्बन्ध में संक्षिप्त विचार प्रगट किये गये हैं। याद विषयसूची दी गई है, जिससे ग्रन्थके विषय, गाथा और पृष्ठ वार मालूम हो सकते हैं । अनन्तर शुद्धिपत्र है । तत्पश्चात् मूल, छाया, हिंदी अर्थ तथा भावार्थ सहित 'कर्मस्तव' नामक
SR No.010398
Book TitleKarmastava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1918
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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