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________________ (५७). चतुरिन्द्रय-पर्यन्त के जीवों में, पहला या दूसरा दोही गुणस्थान हो सकते हैं। भानुयूर्षी का उदय जोषों को उसी समय में होता है जिस समय कि बे दूसरे स्थान में जन्म ग्रहण करने के लिये वक्रगति से जाते हैं । परन्तु तीसरे गुणस्थान में वर्तमान कोई जीव मरता नहीं है। इससे श्रानुपूवीं-नाम-कर्म के उदयवाले जीवों में तीसरे गुणस्थान की सम्भावना भी नहीं की जा सकती । अतएव दूसरे गुणस्थान में जिन १११. कर्म-प्रकृतियों का उदय माना जाता है उनमें से अनन्तानुबन्धि-कपाय-श्रादि पूर्वोक्त १२-कर्म-प्रकृतियों को छोड़ देने से ६९-कर्म-प्रकृतियाँ उदययोग्य रहती हैं । मिश्रमोहनीयकर्म का उदय भी तीसरे गुणस्थान में अवश्य ही होता है इसीलिये, उक्त ६६ और १ मिश्रमोहनीय, कुल १००-कर्म-प्रकृतियों का उदय उस गुणस्थान में माना जाता है। तीसरे गुणस्थान में जिन १००-कर्म-प्रकृतियों का उदय हो सकता है उन में से मिश्रमोहनीय के सिवा, शेष ६६ ही कर्म-प्रकृतियों का उदय चतुर्थगुणस्थानवी जीवों को हो सकता है । तथा चतुर्थगुणस्थान के समय सम्यक्त्व-मोहनीयकर्म के उदय का और चारों प्रानुपूर्वीनामक। के उदय का सम्भव है; इसीलिये पूर्वोक्त और सम्यक्त्व-मोहनीय-श्रादि (५), कुल १०४ कर्म-प्रकृतियों का उदय,, उक्त गुणस्थान में वर्तमानजीवों को माना जाता है। • जब तक अप्रत्याख्यानावरण-कपाय-चतुष्क का उदय रहता है तब तक जीवों को पश्चम गुणस्थान की प्राप्ति नहीं हो सकती । इसलिये अप्रत्याख्यानायरण-कषाग-चतुष्क का उदय, पहले से चौथे तक चार गुणस्थानों में ही समझना
SR No.010398
Book TitleKarmastava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1918
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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