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________________ (१६) निवृत्ति (अपूर्वकरण) गुणस्थान-जो इस गुणस्थान को प्राप्त करचुके हैं तथा जो प्राप्त कर रहे हैं और जो आगे प्राप्त करेंगे, उन सव जीवों के अध्यवसाय स्थानों की ( परिणाम-भेड़ों को) संख्या, असंख्यात-लोकाकाशी के प्रदेशों के बराबर है। क्योंकि इस पाठवे गुणस्थानको स्थिति अन्तर्मुहर्त प्रमाण है और अन्तर्मुहूर्त के असंख्यात समय होते हैं जिनमें से केवल प्रथम समयवर्ती त्रैकालिक-(तीनों कालके ) जीवों के अध्यवसाय भी असंख्यात-लोकाकाशों के प्रदेशों के तुल्य हैं। इस प्रकार दूसरे, तीसरे आदि प्रत्येकसमयवर्ती कालिक जीवों के अध्यवसाय भी गणना में असंख्यात-लोकाकाशों के प्रदेशों के बराबर ही हैं । असंख्यात संख्या के असंख्यात प्रकार हैं । इस लिये एक एक समयवर्ती त्रैकालिक जीवों के अध्यवसायों की संख्या और सब समयों में वर्तमान त्रैकालिक जीवों के अध्यवसायों की संख्या-ये दोनों संख्यायें सामान्यतः एकसी अर्थात् असंख्यात ही हैं। तथापि वे दोनों असंख्यात संख्यायें परस्पर भिन्न हैं । यद्यपि इस पाठवे गुणस्थान के प्रत्येक समयवर्ती त्रैकालिक-जीव अनन्त ही होते हैं, तथापि उनके अध्यवसाय असंख्यात ही होते हैं । इसका कारण यह है कि समान समयवर्ती अनेक जीवों के अध्यवसाय यद्यपि. आपसमें जुदे जुदे (न्यूनाधिक शुद्धिचाले) होते हैं, तथापि समसमयवर्ती बहुत जीवों के अध्यवसाय तुल्य शुद्धिवाले होने से जुदे जुदे नहीं माने जाते । प्रत्येक समय के असंख्यात अध्यवसायों में से जो अध्यवसाय, कम शुद्धिवाले होते हैं, वे जघन्य । तथा जो अध्यवसाय, अन्य सव अध्यवसायों की अपेक्षा अधिक शुद्धिवाले होते हैं, वे उत्कृष्ट कहाते हैं । इस प्रकार एक वर्ग जघन्य अध्यवसायों का होता है । इन दो वर्गों
SR No.010398
Book TitleKarmastava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1918
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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