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________________ (१०६) सं० गा० प्रा० दि. १३,२८-दुवीस सय ३०-दुसय दुर्भग ४-दुइगतिम द्वाविंशति-शत एक सौ बाईस. एक सौ दो. दुभंगनामकर्म, মমম। दुर्भगनामगर्म, दुःस्वरनाम फर्म और अनादेयनाम फर्म. दुःस्वर दुःस्वरनामफर्म. देव. देवेन्द्र देवों का इन्द तथा श्रीदेवेन्द्रसरि. देशविरतगुणस्थान पृ०१४ २२-दूसर ३१-देव ३४-देविंद २,१६-देस देश ४,२६-नपु ३४-मह ३४-~नरअणुपुत्री ६-नरसिंग २७-नरय ४-नरयतिग नपुंसक नपुंसकावेद. नम्-नमत नमन करो. नगनुपूर्वी • मनुष्य-मानुपूर्वी. मरविक. नरगति, नरानुपूर्वी. और नरायु. नरक नरक লগিন্ধ नरकगति, नरकानुपूर्वी थोर नरका. नवनवति निन्यानवे. ज्ञान ज्ञानावरण. ज्ञानविष्मदशक पाँच ज्ञानावरण और पाँच अन्तराय फर्म. नीच नीचगोत्र, ३०-नवनवा २०,३०-नागा १२--जाण विग्ध. दसंग ५,१६-निय
SR No.010398
Book TitleKarmastava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1918
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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