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________________ ४. खण्डिता - काव्यमर्मज्ञ उस नायिका को खण्डिता कहा करते है जिसका हृदय अपने प्रेमी के प्रति इसलिए ईर्ष्या से कलुषित हो जाया करता है क्यो कि वह अपनी किसी दूसरी प्रेमिका के साथ अपने प्रेम सम्भोग को सूचित करने वाली वेष-भूषा मे उसके पास आया-जाया करता है। दशरूपकार भी इस खण्डिता परिभाषा से अधिक प्रभावित प्रतीत हो रहे हैं 'ज्ञातेऽन्यासङ्गविकृते खण्डितेर्ष्याकषायिता । " ५. कलहान्तरिता क्रोध से (अपराधयुक्त नायक को ) तिरस्कृत करके पश्चात्ताप की पीडा ( का अनुभव करने) वाली कहलान्तरिता नायिका है- 'कलहान्तरिताऽमर्षाद्विधूतेऽनुशयार्तियुक्'।' ६. विप्रलब्धा - प्रियतम के निश्चित समय पर न आने के कारण अत्यधिक अपमानित होने वाली विप्रलब्धा कहलाती है'विप्रलब्धोक्तसमयमप्राप्तेऽतिविमानिता ।' नाट्याचार्य भरतमुनि ने विप्रलब्धा का यह लक्षण किया है यस्याः दूतीं प्रियः प्रेष्य दत्वा संकेतमेव वा नागतः कारणेनेह विप्रलब्धा तु सा भवेत् ।। नाट्यशास्त्र २२/२१८ ७. प्रोषितप्रिया - जिस नायिका का प्रिय किसी कार्यसे दूसरे दूर देश मे स्थित होता है, वह प्रोषित प्रिया कहलाती है । 'दूरदेशान्तस्थे तु १ - २ दशरूपकम् २/४० पृ. १५४ दश पृ. १५५ सं. २/४१
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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