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________________ कहते है। इस सन्देशकाव्य मे केवल १३१ श्लोक है। समग्र काव्य मन्दा क्रान्ता छन्द मे ही लिखा गया है। काव्य मेरुदत के अनुकरण पर लिखा गया है। काव्य का विषय नवीन है। इस काव्य में शान्तरस प्रधान है। काव्य का नैतिक और धार्मिक दृष्टिकोण भी उच्च है। काव्य मे कवि ने लक्ष्मी रात्रि आदि का बड़ा सच्चा स्वरूप पाठको के समक्ष प्रस्तुत किया है। यद्यपि काव्य का शान्त रस में पर्यवसान है। फिर भी यत्र तत्र शृङ्गारिक वर्णन भी पाये जाते है। जैन सिद्धान्त की कृति होने के कारण काव्य मे यत्र तत्र जैन धर्म का प्रभाव दृष्टि गोचर होता है। जैसे काव्य के आरम्भ में 'स्वस्तिश्रीणं भवनभवनीकान्त-पंक्ति प्रणम्यम्। प्रौढप्रीत्या परमपुरुषं पार्श्वनाथं प्रणम्य।। काव्य मे भाषा भी प्रसादगुण से पूर्ण है। काव्य मे सत्र प्रवाह दे है। सन्देश काव्य अथवा दूतकाव्य की परम्परा में काव्य का एक विशिष्ट स्थान है। 'इन्दुदूतम्' नामक एक और दूतकाव्य प्राप्त होता है जिसके रचयिता जैन कवि जम्बू है। जिरत्नकोश में मात्र इसका उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त इस काव्य के समबन्ध मे कोई भी जानकारी नहीं प्राप्त होती है। - जैनग्रन्थावली मे जम्बूकवि द्वारा प्रणीत इस काव्य का नाम 'चन्द्रदूत' दिया गया है। इस दूतकाव्य में मालिनी वृत्त में रचित २३ श्लोक है। ____मनोदूतम् - ' इस दूतकाव्य के कर्ता के विषय में कुछ भी ज्ञात नही है। जैनग्रन्थावली में इसके विषय में मात्र इतनी जानकारी है कि इसमें ३०० श्लोक है तथा इसकी मूलप्रति पाटण के भण्डार में उपलब्ध है। मयूरदूतकाव्य -' १९ वीं शती के जैन कवि मुनि धुरन्धर विजय ने इस काव्य की रचना की है। काव्य में कुल १८० श्लोक हैं, जिनमें से । । जैन ग्रन्थावली पृ. ३३२ जैन ग्रन्थ प्रकाशक सभा, अहमदाबाद से वि. सं. २००० में प्रकाशित ग्रन्थाक ५००
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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