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________________ तथा बुराइयों को अपने प्रहार से ठोककर ठीक कर देने की कथा को सन्देश का रूप दिया गया है। काव्य व्यंग्यपूर्ण है। ___मेघदूतम्:-' विक्रम कवि द्वारा रचित यह दूत काव्य अभी तक अनुपलब्ध ही है, इसका मात्र उल्लेख ही उपलब्ध होता है। मेघदूतम्:- लक्ष्मणसिंहकृत यह दूतकाव्य केशवोत्सव स्मारक संग्रह की भूमिका के पृष्ठ १६ पर उल्लिखित है। मेघदौत्यम्:-' मेघदूतम् के ही अनुकरण पर इस दूतकाव्य की भी रचना की गई है। श्री त्रैलोक्यमोहन इस काव्य के रचनाकार है। मेघूदत के ही समान मन्दाक्रान्तां छन्द में ही इस काव्य की भी रचना हुई है। एक यक्ष किसी कारणवश अपनी प्रिया से विरक्त हो एकान्त में जीवन यापन कर रहा था। प्रिया के वियोग में व्यथित मन वाला वह यक्ष, अपनी प्रिया के पास सन्देश भेजने का विचार करता है। अपने सामने आकाश में छाये मेध को देखकर वह उसी को अपना दूत बनाकर अपनी प्रिया के पास उसे भेजता है। काव्य में नवीन शब्दों के प्रयोग के साथ मेघदूत के भी पदों का प्रयोग मिलता है। विषयों पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। जैसा कि काव्य के नाम से स्पष्ट होता है कि इसमे यक्ष का उसकी प्रेयसी के साथ मिलन वर्णित है। कथावस्तु मेघूदत की कथावस्तु के आगे की है। इस काव्य मे देवोत्थानी एकादशी के बाद यक्ष-यक्षिणी का मिलन होता है। उन दोनों की प्रणय लीलाएँ भी वर्णित है। काव्य में मात्र ३५ श्लोक हैं। छन्द मन्दाक्रान्ता ही है। । जैनग्रन्थमाला के खेताम्बर कान्फ्रेन्स, पत्रिका पृ. २३२ पर द्रष्टव्य, अप्रकाशित। जैनसिद्धान्त भास्कर (१९३६ ई.) भाग ३, किरण १, पृ. ३६, अप्रकाशित। जैन सिद्धान्त भास्कर भाग २ किरण २ पृ. १८, अप्रकाशित
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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