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________________ बनकर, उन दोनो के सन्देश को एक दूसरे के पास पहुँचाता। है वहीं नल देवताओ का दूत बनकर उनके सन्देश को अपनी प्रिया तथा काव्य की नायिका दमयन्ती के पास तक पहुंचाता है। काव्य बहुत ही विचित्र है। काव्य में सात उच्छवास है। जिनमें सब मिलाकर ३७७ श्लोक है। काव्य अपूर्ण है। इस विषय मे रचनाकार के प्रति एक कथा मिलती है कि एक बार उन्हे राजपण्डित पिता जी की अनुपस्थिति में एक अन्य पण्डित से शास्त्रार्थ में विजय हेतु वाग्देवी से वर मिला। कि इस प्रकार यह काव्य अधूरा ही रह गया। अपूर्ण होने पर यह काव्य अपने आप मे अद्भूत है। पद्मदूतम्:- राम कथा पर आधारित यह दूतकाव्य श्री सिद्धनाथ विद्यावागीश द्वारा प्रणीत है। काव्य में एक पद्य अर्थात् कमल को दूत बनाया गया है। सागर पर पुल बाँधने हेतु श्रीराम सागर तट पर पहुंचते है। सीताजी अशोक वाटिका मे थी। यह समाचार सीताजी को मिलता हैं कि श्री रामचन्द्र सागर तट पर पुल बाँधने हेतु आये हैं। इस समाचार को जानने के पश्चात् सीता जी के हृदय में तीव्र मिलनोत्कण्ठा उत्पन्न होती है। पर दूर होने के - कारण यह असम्भव था। इसलिए अशोक वाटिका में विद्यमान एक कंमलपुष्प को देखकर उसी के माध्यम से अपना विरह सन्देश श्री राम के पास भेजती है। इस दूत काव्य में कुल ६२ श्लोक हैं। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि प्रस्तुत काव्य एक पूर्ण दूतकाव्य के रूप में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता पदाङ्कदूतम्-' कवि भोलानाथ द्वारा यह दूतकाव्य रचित है। पूर्व के दूतकाव्य की भाँति इस दूत काव्य में भी पदचिह्न को ही, दूत के रूप में विक्रम संवत १२२५ में कलकत्ता से प्रकाशित तथा इण्डिया आफिस पुस्तकालय के कैटलाग मे पृ. १८२६ पर द्रष्टव्य । इण्डिया आफिस लाइब्रेरी, केटलाग भाग ६ ग्रन्थ सं. १४६७ अप्रकाशित
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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