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________________ पान्थदूत : इस सन्देश काव्य की केवल एक ही हस्तलिखित प्रति (सं. ३८९०) इण्डिया आफिस लायब्रेरी, लन्दन मे सुरक्षित है । पन्थदूत का रचनाकाल आधुनिक काल है। इस दूतकाव्य की कथावस्तु श्रीमद्भागवत से सम्बद्ध है। कृष्ण और गोपियो के प्रेम को ही लेकर यह काव्य लिखा गया है। काव्य की कथा इस प्रकार है- यमुना के किनारे कोई गोपी कृष्ण की स्मृति मे मूर्छित होकर गिर पड़ती है। उसकी सेविकाये उसे जल इत्यादि से चेतन अवस्था मे लाती है। इसी अवसर पर मथुरा की ओर जाता हुआ एक पथिक दिखलाई पड़ जाता है। बस गोपियां उसी को अपना दूत बनाकर कृष्ण के पास अपना प्रेम सन्देश भेजती है। इस काव्य मे विरह का वर्णन थोड़ा है, पर कृष्ण को तरह-तरह के उपालम्भ दिये गये है। इस काव्य मे पथिक को गापियो का दूतकल्पित करके कवि ने काव्य में कुछ वास्तविकता ला दी है। 26 हनुमद्दूतम् :-' इस काव्य के रचयिता श्री विज्ञसूरि वीरराघवाचार्य है। आधुनिक सन्देशकाव्यो मे इस सन्देश काव्य का एक विशिष्ट स्थान है। इस काव्य मे मेघूदत के प्रत्येक पद की चतुर्थ पंक्ति को लेकर समस्यापूर्ति की गई है। काव्य का समय वि. सं. १८८५ है । इस काव्य की कथा वाल्मीकि रामायण से सम्बद्ध है। रामचन्द्रजी के द्वारा हनुमान जी को सीता जी की खोज मे लंका भेजने की घटना के आधार पर इस दूत काव्य की रचना की गई है। काव्य की कथा इस प्रकार है। प्रस्रवण गिरि पर सुग्रीव इत्यादि के सहित रामचन्द्र जी ठहरे हुए हैं। सीता जी की खोज के लिए विभिन्न दिशाओं १ २ संस्कृत के सन्देश काव्य पृ. सं. ४६१-४६२ लेखक तथा प्रकाशक- डा. रामकुमार आचार्य एम. ए. पीएच. डी. व्याकरणाचार्य प्रध्यापक, स्वातकोत्तर संस्कृत विभाग गर्वमेन्ट कालेज अजमेर | आगरा वि. द्वारा सं. १९५७ मे पी. एचडी. की उपाधि के लिए स्वीकृतशोधग्रन्थ वही, पृ. ४७० - ४७९
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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