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________________ भाषा प्रसाद गुणयुक्त है तथा भावो की कोमलता भी है। स्थान-स्थान पर कोकिल शुक और भौरो के मधुर रव तथा संगीत की मधुर धारा का प्रवाह सा काव्य मे दीख पड़ता है। काव्य मे अनुप्रास की छटा दर्शनीय है जैसे 'कुञ्जे कुओ कलितकुसुमे कल्पयन्नगरागम् है। पदाङ्कदूत :-' प्रस्तुत दूतकाव्य के रचयिता कृष्णसार्वभौम हैं। इस दूतकाव्य का समय वि. सं. १७८० है। कृष्ण के विरह में व्याकुल तथा उन्मत्त हो घूमती हुई गोपी अपने घर से यमुना तट पर स्थित किसी कुंज में जाती है। वह कृष्ण को न पाकर वह अचेतन अवस्था में हो जाती है। कुछ समय पश्चात मूर्छा चेतन अवस्था की स्थिति आने पर उसे श्री कृष्ण के चरण चिह्न दिखलाई पड़ता है अतः वह श्रीकृष्ण के चरण चिह्न से दूत के रूप में कृष्ण के पास मथुरा जाने की प्रार्थना करती है। काव्य में कुल ४६ श्लोक है। अन्त का एक श्लोक शार्दूलविक्रीडत छन्द में है। शेष समस्त श्लोक मन्दाक्रान्ता छन्द में ही है। इस दूतकाव्य में साहित्य भक्ति और दर्शन इन तीन धाराओ का काव्य मे अपूर्व संगम है। बौद्ध दर्शन का खण्डन भी कवि ने खूब ही किया है। काव्य सरस तथा अपूर्व संगम है। बौद्ध दर्शन का खण्डन भी कवि ने यथास्थान खूब ही किया है। काव्य सरस तथा मोहनीय मनोदूत :-' इस दूत काव्य का लेखक तैलंग ब्रजनाथ हैं। मनोदूत का समय वि. सं. १८१४ है। इस काव्य की कथा महाभारत की द्रौपदीचीर हरण घटना पर आश्रित है। युधिष्ठिर द्यूतक्रीडा में द्रौपदी को दाव पर लगाते है और हार जाते है। दुर्योधन के आदेशानुसार दुःशासन द्रौपदी का केश पकड़ कर उसे बलपूर्वक राजसभा में खींच लाता है। वहाँ कर्ण उसका बड़ा संस्कृत के सन्देश काव्य पृ. सं. ४३५-३६ संस्कृत के सन्देश काव्य पृ. सं. ४४५-४६
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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