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________________ मंगलाचरण का प्रयोग नही होता। लेकिन इस कवि ने काव्य के आदि मे कृष्ण की स्तुति मे मंगलाचरण भी किया है। समस्त काव्य मे शिखरिणी छन्द का ही प्रयोग है। वैदर्भी रीति तथा माधुर्य गुण का प्रयोग है। इस दूत काव्य मे कवि ने भक्ति की पवित्र धारा बहाई है। । उद्धवदूत' :- उद्धवदूत के रचयिता श्री माधव कवीन्द्र भट्टाचार्य हैं। इस दूतकाव्य का रचनाकाल वि० सप्तदश शतक है। जैसा काव्य के नाम से स्पष्ट है, इस काव्य में उद्धव को दूत बनाया गया है। श्रीकृष्ण गोपियों के लिए अपना संदेश देकर उद्धव को मथुरा से गोकुल भेजते है। काव्य मे विप्रलम्भ श्रृंगार का मुख्य रूप से चित्रण किया गया है। तदनुसार माधुर्यगुण और वैदर्भीरीति का प्रयोग है। मन्दाक्रान्ता छन्द का प्रयोग है। केवल अन्त के श्लोक में अनुष्टुप् छन्द का प्रयोग है। काव्य में कुल १४१ श्लोक है। भ्रमरदूत:- इस दूतकाव्य के रचयिता रुद्रन्यायपञ्चानन हैं। भ्रमर काव्य का समय वि० सप्तदश शतक का उत्तरार्द्ध है। इस दूत काव्य की कथा रामायण की कथा से सम्बन्ध रखती है। कवि ने अपनी कल्पना से मूल कथा मे एक और घटना बढ़ा दी है। रावण जब सीताजी को हर कर लंका ले जाता है तब सीताजी की खोज करते करते रामचन्द्र माल्यवान् पर्वत पर पहुँचते है। वहाँ से सीताजी की खोज के लिए हनुमान जी को लंका भेजते हैं। हनुमान एक ही दिन में सीताजी का पता लगाकर तथा चूड़ामणि लेकर वापस आ जाते है। इधर रामचन्द्र जी सीताजी के विरह में व्याकुल रहते है, निकट के सरोवर मे भ्रमर दिखलाई पड़ जाता है। बस वे भ्रमर को अपना दूत बनाकर सीता के पास भेजते हैं। कवि ने मेघदूत से प्रेरणा लेकर ही यह काव्य लिखा है। बंगाल के संस्कृत दूतकाव्यों में यह काव्य एक सरस तथा सुन्दर रचना है। यद्यपि विषय भाव तथा भाषा और शैली इत्यादि की दृष्टि से ' संस्कृत के सन्देश काव्य पृ० सं० ३९७-९८
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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