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________________ 211 निम्नलिखित श्लोक मे अत्याधिक अप्रस्तुत विधान का प्रयोग हुआ हैपत्याकूतं यदुपतिगृहा: संविदाना मदानामाद्यं बीजं निवसितश्लक्ष्णपत्तोर्ववाः । दृक्कोणेन त्रिभुवनमपि क्षोभयन्त्यः परीयु: कर्मापेक्षाः परमपुरुषं मोहसेनाः प्रभुं तम् ।। २४३।। श्री कृष्ण की पत्नियों ने अपने पति का संकेत पाते ही मदों के मूल कारण उन प्रभु श्री नेमि को उसी प्रकार घेर लिया जैसे कर्म की उपेक्षा रखने वाली मोहसेना आत्मा को घेर लेती है। काव्य मे प्राकृतिक उपमानो का प्रयोग भी स्थान-स्थान पर मिलता है - लाग्नेऽभ्यासीभवति दिवसे दारकर्मण्यकर्मायारभ्यन्त प्रति यदुग्रहं व्यक्तकृत्यान्तराणि। वासन्ताहे प्रतितरु यथा पल्लवानि प्रकामं पुष्पोत्पाद्यन्यखिलगलितप्रत्नपत्रान्तराणि।।३।२५।।' लग्न के दिन जैसे-जैसे नजदीक आने लगे वैसे ही सभी यादवों के घर मे अन्य कार्यों को छोड़कर उसी प्रकार विवाह से सम्बन्धी कार्य होने लगे जैसे बसन्त के आने पर वृक्षों से पुराने पत्ते गिरने लगते हैं और नये पत्ते एवं पुष्प वृक्षो मे लगने लगते हैं। कवि ने अन्य श्लाको में भी प्राकृतिक उपमानों का प्रयोग किया है - दुग्धं स्निग्धं ...........मां ययाचे।३/२३॥ जैनमेघदूतम् २/४३ जैनमेघदृतम् ३/२३ जैनमेघदूतम् ३/२५
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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