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________________ 198 नवीन लाल लाल पत्ते ही उनके शरीरपर लिप्त सिन्दूर एवं वर्णनीय सुनहरे केले की पंक्तियाँ ही उनके दॉत पर मढा हुआ सोना है। वसन्त ऋतु के सुहावने प्राकृतिक दृश्य केवल मानव हृदय को नहीं वरन् पशु-पक्षियों तथा अन्य अचेतन वस्तुओ मे भी प्रेम विह्वलता और अपूर्व उत्कण्ठा का संचार करते हुए दिखाई देते हैं। मनोहर कूजन करते हुए राजहंस तलाबो मे चारों तरफ खेल रहे है, जो काम रूपी राजा के द्वारा शत्रु नगरी में प्रवेश के समय बजाये जाने वाले शंखों की तरह लग रहे हैं तथा एक आम्रवृक्ष से दूसरे आम्रवृक्ष पर जाने वाली तोतो की पंक्तियाँ नये नये पत्तो से बाँधी गयी वन्दनवार की शोभा को धारण कर रही है। चारो तरफ प्रकृति की ऐसी रमणीय छटा देखकर मानव, पशु-पक्षी तो अपना सूझ-बूझ खोये ही रहते है। यति लोग भी ऐसी वसन्त ऋतु की सम्पदा को देखकर डरने लगते है कि कहीं कामदेव हम पर आक्रमण न कर दे। ऐसा प्रतीत होता है कि कामदेव ने भी उनके डर का कारण समझ लिया है और अपनी सेना को तैयार कर विजय की दन्दुभि बजाकर यतियों को - ललकार रहा हैं। कवि को प्रकृति की सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुओं के मनोरम सौन्दर्य मे कामदेव धनुष, बाण, कटार आदि से सुसज्जित युद्ध के लिए तैयार दिखलाई देता है। वसन्त में खिलने वाले अर्ध विकसित फूलों के भीतर छिपी हुई तथा कुछ दीखने वाली पीली पीली केसरों वाली कामदेव के कन्धे पर बँधे हुए तरकसों मे रखे हुए, दीप्त तथा सुन्दर स्वर्णमुख वाले वाणों के समान सुशोभित हो रही है। नगर के बाहरी बागों में, मूल में तथा शिखर भाग मे सीधे वृक्षो की तनों से लिपटी हुई मध्य भाग में फलों के गुच्छों से लदी हुई तथा अपने उत्कट परिमल गन्ध के कारण भौरों के समूह से घिरी । जैनमेघदूतम् २८
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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