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________________ 196 सजीव चित्रण किया है। वर्षाकाल के काले काले मेघों को देखकर किसका मन भाव-विभोर नही हो उठता अतः इन नवीन मेघो के दर्शन से सहजतया ही मन के भाव उद्दीप्त हो जाते है। काव्य के प्रथम सर्ग में ऐसे ही दृश्यो को देखकर पति के वियोग से दुःखित राजीमती के हृदय में तीव्र उत्कण्ठा जागृत होती है और वह सोचने लगती है कि वर्षाकाल के नये नये ऊँचे मेघो को देखकर युवतियो के मन में अपने प्रिय के प्रति तथा युवको के मन में अपनी प्रेमिका के प्रति सहजतया उत्कण्ठा उत्पन्न होती है।' ___ कवि ने बाह्य तथा अन्तः प्रकृति के समन्वय से काव्य की शोभा को द्विगुणित कर दिया है। मानवीय संवेदना को स्पष्ट करने के लिए कवि ने उनके समान घटनाओ को प्रकृति में ढूढा है। मानवीय संवेदना को स्पष्ट करने वाले एक अन्तः प्रकृति का रुचिर रूप देखिए- वर्षाकाल में स्वभाव से ईर्ष्यालु विरहिणी स्त्रियाँ अपने शोक को उत्पन्न करने वाले मेघ से जो ईर्ष्या करती है वह ठीक ही है क्यो कि मेघ के नीलतुल्य श्यामवर्ण वाला होने पर वे भी मुख को श्याम बना लेती है, जब मेघ बरसता है तो विरहिणी स्त्रियाँ . भी अश्रु बरसाती है, जब वह गरजता है तो वे भी चातुर्यपूर्ण कटु विलाप करती है और जब मेघ विजली चमकाता है तो विरहिणी स्त्रियाँ भी उष्ण निःश्वास छोड़ती है। जैनमेघदूतम् की प्रकृति प्रीति की साकार मूर्ति है। प्रकृति के सभी पदार्थ भावमय एवं चेतनामय हैं। वे मानवीय भावों से ओत-प्रोत है। मेघ अपने मुक्त जल से दावानल से दग्ध वन को धीरे-धीरे शान्त करता हैं इसीलिए राजमती भी अपने स्वामी के पास उसके द्वारा सन्देश भेजकर उनके जैनमेघदूतम् १/३ प्रत्यावृत्ते कथमपि ततश्चेतने दत्तकान्ता कुण्ठोत्कण्ठं नवजलमुचं सानिध्यौ चदहयौ १/३ वही १/६
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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