SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 193 आचार्य मेरूतुङ्ग ने अपनी प्रतिभा द्वारा मन्दाक्रान्ता छन्द मे अपनी स्वतन्त्र कविकल्पना से जैनकथा को रचकर काव्य जगत को एक नया आयाम दिया है। जैसा कि मन्दाक्रान्ता का लक्षण पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा दिया गया है उसका पूर्णतः आचार्य ने पालन किया है तथा मन्दाक्रान्ता छन्द में उपनिबद्ध काव्य का प्रत्येक श्लोक भी छन्द रचना की कसौटी पर परिपक्व सिद्ध होता है। कतिपय उदाहरण दर्शनीय है - मगण भगण नगण तगण तगण गुरू sss ।। ।। ऽऽ।। ऽऽ कश्चित्का न्तामवि षयसु खानीच्छु रत्यन्त धीमा sss ।। ।। । ssss नेनोवृत्तिंत्रिभु वनगु रू:स्वैर मुज्झाञ्च कार 555 SII 111 551 551 55 दानंदत्त वासुर तरुरि वात्युच्च धामारु रुक्षः 555 511 11 551 551 55 पुण्यं पृथ्वीधर वरम थोरैव तस्वीच कार।। 555 SII III 551 551 55 उपर्युक्त श्लोक मे प्रत्येक चरण १७ अक्षरों का है, जिसमें पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, दसवाँ, ग्यारहवाँ, तेरहवाँ, चौदहवाँ, सोलहवाँ एवं सत्रहवाँ वर्ण गुरु है, शेष वर्ण लघु है। यथा १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ जैनमेघदूतम १/१
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy