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________________ नीचा दिखाने हेतु एक चाल चली। उसने अपनी पुत्री की प्रशंसा मे कवियो से अनेक रचनाएँ निर्मित करवाई। संगीतज्ञो द्वारा कुछ पक्षियों के गले में घण्टियॉ बंधवायी तथा उन पक्षियों को कवियो द्वारा रचित रचनाएँ कण्ठस्थ करवायी। तब इन पक्षियो को विदेह राजा के राज्य में भेजा गया। वे पक्षी पञ्चाल राजकुमारी के रूप लावण्य की प्रशंसा एवं रचनाओं का गायन करते तथा साथ मे यह भी कहते कि राजकुमारी विदेहराजा पर अनुरक्त है और वह उसी का वरण करना चाहती है। पक्षियों का गीत सुनकर विदेहराजा भी अनुरक्त हो गया। इस प्रकार पक्षियो द्वारा पञ्चालराजा ने विदेह राजा पर विजय प्राप्त की। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल मे लोग पक्षियो को प्रशिक्षित करके उनसे दूत कार्य सम्पादित करवाते थे। बौद्ध साहित्य के बाद हमे जैन साहित्य में भी दूत सम्प्रेषण के प्रमाण प्राप्त होते है। जैन साहित्य मे 'पउमचरियं' सर्वप्राचीन ग्रन्थ है जिसके रचनाकार विमलसूरि है। इस काव्य में कई स्थलों पर दूत सम्प्रेष्ण का प्रसंग सर्वप्रमुख है। इस काव्य मे भी पवनसुत हनुमान को कविराज ने दूतरूप में उपस्थित किया है। सर्वप्रथम जब हनुमान श्री राम से मिलते हैं, तब श्री राम उनको दूत रूप मे लंका जाने के लिए कहते है। हनुमान इस दौत्यकर्म को अतिलघु समझ कर श्री राम से कहते है - १ 10 सव्वे वि तुज्झ सुपुरिस! पडिउवयारस्स उज्जया अम्हे । गन्तूण सामि ! लंकं, रक्खसबाहं पसाएमो । । सामिय देहाssणत्तिं, तुह महिला जेण तत्थ गन्तुणं । आणोमि भुयवलेणं पेच्छसु उक्कण्ठिओ सिग्धं । । ' पउमचरिचं, सुन्दरकाण्ड ४९/२७-२८
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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