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________________ 166 में पहना दी। उस माला से युक्त वे उसी प्रकार शोभित हुए जिस प्रकार वर्षाऋतु मे सुन्दर कृष्ण वर्ण तुम (मेघ) इन्द्रधनुष से शोभित होते हो। उपर्युक्त श्लोकों के पदो मे क्लिष्टता दिग्दर्शित है। एक अन्य स्थल पर कवि ने पदो मे मधुरता लाने के लिए रमणीय भावो की अभिव्यञ्जना की है - श्री खण्डस्य द्रवनवलवैर्नर्मकर्माणि बिन्दु बिन्दुन्यासं वपुषि विमले पत्रवल्ली लिलेख। पौष्पापीडं व्यधि च परा वासरे तारतारा सारं गर्भस्थितशशधरं व्योम संदर्शयन्ती।।' अर्थात एक अन्य पत्नी नर्म कर्म की पण्डिता थी चन्दन रस के नयेनये लवो में श्री नेमि के सुन्दर शरीर पर बिन्दुविन्यास पूर्वक पत्रवल्ली की रचना की। फिर उनके सिर पर फूलो के मुकूट को रखकर दिन में ही चन्द्र एवं ताराओं से युक्त आकाश को दिखलाने लगी। ____ अर्थात श्री नेमि का शरीर श्याम वर्ण होने से आकाश तुल्य था पत्रवल्ली ताराओं के सदृश थी तथा फूलों का मुकुट चन्द्रमा की तरह लगता था। प्रस्तुत श्लोक में कवि ने मधुरता एवं सरसता लाने का पूर्णतः प्रयास किया है। कवि ने इसप्रकार के शृङ्गारिक प्रसंगों को माधुर्य गुण ये विभूषित किया है। काव्य में विप्रलम्भ शृङ्गार माधुर्य गुण के कारण मधुरतम की पराकष्ठा पर पहुँच गया है। जैसे सखियों द्वारा समझाये जाने पर कि तुम दूसरे राजकुमार के साथ विवाह कर लेना, इस प्रकार की बातों को सुनकर जैनमेघदूतम् २/२०
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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