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________________ को जागृत किया। इस विवेचनानुसार भी रौद्र से ही करुण रस की उत्पत्ति बतायी गयी है। यमराज को करुण रस का देवता बताया गया है। 127 साहित्यदर्पणकार के अनुसार 'करुणरस' वह रस है जिसे शोकरूप स्थायीभाव का पूर्णाभिव्यञ्जन कहा गया है। इसका आविर्भाव इष्टनाश और अनिष्ट प्राप्ति से संभव है। इसका वर्ण कपोतवर्ण है और यम इसके देवता माने गये हैं। इसका 'स्थायी' भाव 'शोक' है। इसका जो आलम्बन है वह विनष्ट व्यक्ति है। इसके उद्दीपन वर्ग में दाहकर्म आदि की गणना है दैवनिन्दन, भूमिपतन, क्रन्दन वैवर्ण्य, उच्छ्वास, निश्वास, स्तम्भ प्रलपन आदि आदि इसके अनुभाव माने गये हैं। साथ ही साथ निर्वेद, मोह अपस्मार, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, विषाद जड़ता, उन्माद और चिन्ता आदि उसके व्यभिचारी भाव है।' (६) वीभत्स रस बीभत्स का परिचय देते हुए आपका कथन है कि निन्दित गुणयुक्त विभाव जब स्थायी भाव में अन्य सहयोगी भावों के साथ विद्यमान रहते हुए सामाजिकों के बुद्ध्यवस्थ एवं असत्त्वयुक्त चिदन्वयी मन में विकार उत्पन्न करता है तो तत्कालीन भाव के आस्वाद्य रूप को वीभत्स कहा जाता है ? - १ शारदातनय ने बीभत्स की उत्पत्ति पर विचार करते हुए इसे यजुर्वेद से उत्पन्न बताया है और तम एवं सत्व युक्त मन से बाह्यार्थक का आश्रय लेकर बीभत्स रस को उत्पन्न होने वाला सिद्ध किया है। व्यासोक्त मार्ग से वीभत्स की उत्पत्ति पर विचार करते हुए प्रस्तुत ग्रन्थकार का कहना है कि ब्रह्मसभा में नटों ने जिस समय शंकर के कल्पना मार्ग का अभिनय किया उस समय बृहत् सभा में नटों ने जिस समय शंकर के कल्पान्त कर्म का अभिनय किया उस समय ब्रह्मा के उत्तरमुख से भारती वृत्ति के सहारे बीभत्स रस उत्पन्न साहित्यदर्पण ३ / २२२-२२४
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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