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________________ 120 दिखलाई पड़ता है। (२) कुसुम्भराग इसमें अनुराग बाहरी चमक दमक तो रखता है किन्तु हृदय से हट जाता है। (३) मञ्जिष्ठाराग वह अनुराग हृदय में भी होता है बाहरी दिखावे मे भी आता है। (२) मान विप्रलम्भ - मान का अभिप्राय है कोप (प्रणय कोप)। इसके दो भेद है (१) प्रणयसमुद्भवः - इसमें अकारण कोप का भाव रहता है। (२) ईर्ष्यासमुद्भव किसी दूसरी प्रेमिका पर अपने प्रेमी की आसक्ति के देखने, सुनने अनुभव करने के कारण, नायिका का प्रेम-कोप (३) प्रवास विप्रलम्भा -प्रवास का अभिप्राय है कार्यवश शापवश अथवा संभ्रमवश नायक के देशान्तर गमन। प्रवास विप्रलम्भ में नायिका की ये चेष्टाये हुआ करती है - अङ्गमालिन्य, वस्त्रमालिन्य, एकवेणी धारण, निश्वास उच्छ्वास, रोदन, भूमिपतन आदि-आदि। इसमे १० कामदशायें स्वभाविक है - (१) अङ्गों का असौष्ठव, (२) सन्ताप (३) पाण्डुता (४) दुर्बलता (५) अरुचि (६) अधीरता (७) अनालम्बनता (८) तन्मयता (९) उन्माद (१०) मूर्छा। मरण की इसकी ११ वी दशा है। (४) करुण विप्रलम्भ -करुण विप्रलम्भ वह शृङ्गार प्रकार है जिसे प्रेमी और प्रेमिका में से किसी एक के दिवंगत हो जाने किन्तु पुर्नजीवित हो सकने की अवस्था में, जीवित बचे दूसरे के हृदय के शोक संवलित रतिभाव का अभिव्यञ्जन कहा गया है। यह यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि प्रेमी और प्रेमिका में से किसी एक की आत्यन्तिक मृत्यु से मिलन की अत्यन्त निराशा अथवा परलोक में मिलन की आशा की अवस्था में जो रस अभिव्यङ्ग्य हो सकेगा, वह करुण रस ही होगा। न कि करुण विप्रलम्मा संभोग शृङ्गार - दर्शनस्पर्शनादीनि निषेवेते विलासिनौ।
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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