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________________ वपुष्मान्वीतभीर्वाग्मी दूतो राज्ञः प्रशस्यते । । ' राजा को चाहिए कि वह सब शास्त्रो का विद्वान, इंगित आकार और चेष्टा को जानने वाला शुद्धचरित, चतुर तथा कुलीन दूत को नियुक्त करे । अनुरक्त शुद्ध चतुर, स्मरण शक्ति युक्त देश काल का विज्ञात, सुरूप वाला निर्भीक एवं वाग्मी दूत श्रेष्ठ होता है। आगे चलकर मनु दूत की महत्ता का वर्णन करते है - आमात्ये दण्ड आयत्तो दण्डे वैनयिकी क्रिया । नृपतौ कोशराष्ट्रे च दूते संधिविपर्ययौ । । दूत एव हि संधत्ते भिनत्त्येव च संहतान् । २ दूतस्तत्कुरूते कार्ये भिद्यन्ते येन वा न वा । । गरुण पुराण में दूत का लक्षण निम्नवत् दिया गया है:बुद्धिमान्मतिमाश्चैव परचितोपलक्षकः क्रूरो यथोक्तवादी च एव दूतो विधीयते । । ' बुद्धिमान, मतिमान, परचिताभिप्राय, विज्ञाता, क्रूर तथा जैसा कहा जाये वैसा कहने वाला दूत होना चाहिए । २ साहित्य के रस शास्त्र में दूत का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । रति भाव के परिपाक के लिए दूत अपरिहार्य सा विदित होता है । शृङ्गार रस मे अवलम्ब और आश्रय उभयाश्रित और उभयान्वित रहते है। नायक और नायिका में दोनों एक दूसरे के लिए अवलम्ब और आश्रय दोनों ही होते है। अतः रतिभाव की समग्र अवस्थिति के लिए नायक तथा नायिका दोनों में रति भाव ३ 3 मनु समृति ७ /६३ - ६४ 22 "} ७/६५-६६ गरुण पुराण ६/८/८
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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