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________________ लिया जैसे विद्वान कवि सरिग्रन्थो के निर्दोष अर्थ वाले सूक्ति समूह को ग्रहण कर लेता है - गर्जदगर्जः फलमथ ललौ लीलयाऽनाश्रवार्थं सारग्रन्थान् कविरिव सुधीः सद्गुणं सूक्तजातम् ।।' इसी प्रकार एक अन्यस्थल पर राजीमती ग्रीष्म ऋतु के दिन और रात्रि की वास्तविक स्थिति से परिचय कराती है। दिन निरन्तर अपने प्रताप के साथ बढता रहा। पर रात्रि अपनी शीतलता के कारण घटती ही गई तो इसमे आश्चर्य की कोई बात नहीं क्यों कि निर्मल स्वभाव वाले लोग प्रायः उन्नति करते है और मलिन स्वभाव वाले क्षीणता को प्राप्त होते हैं। उपर्युक्त सूक्तियो को देखते हुए हम कह सकते है कि राजीमती को भाषा पर अधिकार है। उसने साधारण सी बात को सूक्तियों में पिरो दिया है। कही कहीं तो अपनी भाषा को उपमादि अलंकारों से इस प्रकार अलंकृत किया है कि सामान्य व्यक्ति उसकी कल्पना नहीं कर सकता है। राजीमती के बाह्य सौन्दर्य के विषय में अलग से कुछ भी नहीं मिलता है। परन्तु उसकी सुन्दरता का पता उसी द्वारा कहे गये सन्देशों से लगा सकते उदाहरणार्थ - राजीमती श्री नेमि से कहती है कि 'आपके ज्येष्ठ भ्राता श्रीकृष्ण एक हजार सुन्दरियों के साथ क्रीडागार में अविश्रान्त रूप से विहार करते है और आप इतना समर्थ होते हुए भी एक सुन्दरी को भी स्वीकार करने का उत्साह नहीं करते।" । जैनमेघदूतम् २/३८ जैनमेघदूतम् ४/१९
SR No.010397
Book TitleJain Meghdutam ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Dwivedi
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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